आज भी
चिंतित नहीं हूँ मैं ,
जरा भी नहीं
रोम-रोम
मेरे आज भी
कम्पन विहीन है ।।
प्रयास !!
पूरा था,
पर जो मजाल हो
मेरी किन्ही
आँखों में
आयें आंसू एक बूंद हो ?
उपवास!!
सोचा था ,
लेकिन, पल बीतते
क्षुदा-पूर्ति को
खाना तो था ही ।
विरोध !!
करना तो था ,
लेकिन
घर-के ,बाहर के, ऑफिस के,
देश के,राज्य के,विदेशों के
ख़बरों को समय देना भी तो
मज़बूरी है ।
नौकरी तो निभानी है,
विरोध !!
वो तो होता रहेगा ।।
पर किस बात का मुझको मलाल हो?
जुझारू क्यों कर अब मेरे जज्बात हो ?
क्या??
बलात्कार! हत्या! इन्साफ
मेरे भाई
जगतगुरु के इस देश में अब
बलात्कार ! रोज मर्रा की ही बात है ।