The power of thought

The power of thought

Tuesday, July 17, 2012

यात्रा जारी है

"भइया ,ऐसा कैसे हो गया की कुछ जानवर मनुष्य बन गए,और कुछ नहीं ?" मेरी छोटी बहन ने मुझसे पूछा ।
मैं सोच में पड़ गया।अपने बचपन में सोचा करता था पर आगे समय नही मिला और मैंने इस विषय पर सोचना बंद कर दिया था।परन्तु उपर वाले की लीला वो सवाल फिर से मेरे सामने आ गया । इसके पहले की मैं अपनी बुद्धि का प्रयोग करता उपर वाले ने मेरी मुश्किल हल कर दी "गुवाहाटी में जवाब दे कर"।
वाकई उस दिन ऐसा ही लगा मानों जो विकास के क्रम में पीछे रह गए थे उनकी पशुता उन्हें खीच रही हो। अगर कोई कॉमिक्स पड़ता रहा हो तो वो "कोबी-भेड़िया" के घटना क्रम से समझ सकता है । एक लड़की का शोषण करने को सब उतारू थे ।लेकिन फिर जनता की जागरूकता (जो हमेशा विलम्ब से ही आती है) की वजह से प्रशासन हरकत में आया और जाने लगे सब एक एक कर शोभा-यात्रा को । जनता नि:संदेह प्रशंसा की पात्र है,आखिर हर ऐसी घटना के बाद वही है जो मोमबत्ती लेकर सड़क पर उतरती है,सोशल-मीडिया पर अपना गुस्सा दिखाती है,और तो और किसी कमजोर पर शक होने पर जान भी ले लेती है। लेकिन एक दूसरा प्रश्न जो मुझे हमेशा परेशान करता है वो ये की जब वो खास दुर्घटना घट रही होती है उस समय ये सर्व-शक्तिमान जनता कहाँ सोयी रहती है?
ये भी कमाल ही हो गया,निकला था एक प्रश्न का उत्तर खोजने पर यहाँ एक सवाल ही मिल गया। देखता हूँ इन दो सवालों के जवाबों के तलाश में और न जाने कितने सवालों से रूबरू होना पड़े ।फिर तो अभी कोई जवाब नहीं दिया जा सकता क्यूंकि -अभी तो  "यात्रा जारी  है 

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