ये दुनिया बलिदान चाहती है ।प्रत्येक परिवर्तन किसी न किसी की शहादत पर ही निर्भर करता है और परिवर्तन लाने की कोशिश करने वालों को खुद अपनी जान बचने का तो सोचने का भी हक नहीं ।
जी नहीं,ये पंक्तियाँ किसी बहुत बड़े विचारक ने नहीं कही ये उद्गार है दुनिया का,इसमें रहने वालों का,हमारा ।
नहीं,न ये क्या कह रहे हो ?? अजी छोड़िये ये बहाने ।
आज के समाचार-पत्रों की एक सुर्खी है"असान्जे के बारे में " जिसे पढते ही मुझे पुराने दिन याद आ गये जब असान्जे ने शरण के लिए आवेदन कर रखा था। बड़े बड़े विद्वानों का उससे तुरंत ही मोह भंग हो गया ।
"अजी बोलिए जरा ,ये भी कोई बात हुई जरा से प्राण संकट में दिखे तो निकल गयी सारी बहादुरी "
"उसे कम से कम ऐसा कोई कायरता भरा कम नही करना चाहिए था ""
बिलकुल कोई भी जो ऐसा कोई संघर्ष कर रहा हो अपने प्राणों के बारे में सोचने की मुर्खता भी कैसे कर सकता है।अजी ये तो पापी है जो अपने बारे में भी सोच ले।हमारी बात अलग है हम सिर्फ अपनी ही चिंता करेंगे देश,दुनिया जाये जले अपनी बला से।
कुछ ऐसा ही नजरिया रामदेव के भक्तों का हो गया था जब रामदेव तथाकथित रूप से अपने प्राण बचाने को स्त्री-वेष धर नाकाम चेष्टा कर रहे थे और पुनः फिर उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के प्रति जब वो अपने प्राण बचाते बचाते किसी तरह आश्रम पहुंचे ।
न हमें संतोष नहीं हुआ भला किसी सन्यासी को अपने प्राणों की क्या चिंता?? अरे भले मानुष प्राणों की चिंता तो देवताओं को भी हुआ करती है जो उन्हें संकट में पा जा पहुंचते है विष्णु के सम्मुख । देवाधिदेव महादेव भी तो भस्मासुर से प्राण बचाने हेतु विष्णु को पुनः सुंदरी बना बैठे थे।कोई कथा सुनाने या किसी का पक्ष लेने का कतई भी कोई इरादा नहीं तो बस उन कुछ लोगो का पक्ष रख रहा हूँ जो अपने प्राणों की चिंता करते हुए भी इस दुनिया व् समाज के बारे में सोचने का हौंसला तो रखते है । और रही बात की उन्हें प्राणों की चिंता क्यों?? तो कारण तो हम खुद ही है ...जिन्होंने आज़ादी के लिए अपने प्राण दे दिए आज कितना याद रखते है हम उन्हें ....एक स्मारक किसी गली के मोड़ पर, बस। उन सब का परिवार आज दाने दाने को तरस रहा है..और हाँ जो शहीद नहीं हुए उनके बारे में कुछ कहने को मेरा मन नहीं ।।
तो बंधू जब हम खुद कुछ नहीं कर रहे सिवाय नारे लगाने के तो जो कर रहे हैं उन्हें अपने प्राणों की चिंता की इजाजत भी दे ही देते हैं ........क्यूँ??
जी नहीं,ये पंक्तियाँ किसी बहुत बड़े विचारक ने नहीं कही ये उद्गार है दुनिया का,इसमें रहने वालों का,हमारा ।
नहीं,न ये क्या कह रहे हो ?? अजी छोड़िये ये बहाने ।
आज के समाचार-पत्रों की एक सुर्खी है"असान्जे के बारे में " जिसे पढते ही मुझे पुराने दिन याद आ गये जब असान्जे ने शरण के लिए आवेदन कर रखा था। बड़े बड़े विद्वानों का उससे तुरंत ही मोह भंग हो गया ।
"अजी बोलिए जरा ,ये भी कोई बात हुई जरा से प्राण संकट में दिखे तो निकल गयी सारी बहादुरी "
"उसे कम से कम ऐसा कोई कायरता भरा कम नही करना चाहिए था ""
बिलकुल कोई भी जो ऐसा कोई संघर्ष कर रहा हो अपने प्राणों के बारे में सोचने की मुर्खता भी कैसे कर सकता है।अजी ये तो पापी है जो अपने बारे में भी सोच ले।हमारी बात अलग है हम सिर्फ अपनी ही चिंता करेंगे देश,दुनिया जाये जले अपनी बला से।
कुछ ऐसा ही नजरिया रामदेव के भक्तों का हो गया था जब रामदेव तथाकथित रूप से अपने प्राण बचाने को स्त्री-वेष धर नाकाम चेष्टा कर रहे थे और पुनः फिर उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के प्रति जब वो अपने प्राण बचाते बचाते किसी तरह आश्रम पहुंचे ।
न हमें संतोष नहीं हुआ भला किसी सन्यासी को अपने प्राणों की क्या चिंता?? अरे भले मानुष प्राणों की चिंता तो देवताओं को भी हुआ करती है जो उन्हें संकट में पा जा पहुंचते है विष्णु के सम्मुख । देवाधिदेव महादेव भी तो भस्मासुर से प्राण बचाने हेतु विष्णु को पुनः सुंदरी बना बैठे थे।कोई कथा सुनाने या किसी का पक्ष लेने का कतई भी कोई इरादा नहीं तो बस उन कुछ लोगो का पक्ष रख रहा हूँ जो अपने प्राणों की चिंता करते हुए भी इस दुनिया व् समाज के बारे में सोचने का हौंसला तो रखते है । और रही बात की उन्हें प्राणों की चिंता क्यों?? तो कारण तो हम खुद ही है ...जिन्होंने आज़ादी के लिए अपने प्राण दे दिए आज कितना याद रखते है हम उन्हें ....एक स्मारक किसी गली के मोड़ पर, बस। उन सब का परिवार आज दाने दाने को तरस रहा है..और हाँ जो शहीद नहीं हुए उनके बारे में कुछ कहने को मेरा मन नहीं ।।
तो बंधू जब हम खुद कुछ नहीं कर रहे सिवाय नारे लगाने के तो जो कर रहे हैं उन्हें अपने प्राणों की चिंता की इजाजत भी दे ही देते हैं ........क्यूँ??
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