भारत के किसी भी शहर में जायें, गाँव या महानगर । किसी भी व्यक्ति से बात कर कुछ समझाने का प्रयास करें वह आपको ऐसी हिराकत भरी नजरों से देखेगा की आपको अपने वजूद पर ही शर्म आ जाये| और यह पूरा ही देश ऐसे विद्वानों से भरा पड़ा है, पर अहम सवाल यहीं खड़ा होता है , जब सब ही इतने समझदार हैं तो फिर क्यूँ समूचा शहर इसे ही महानुभावों से विनती करते तस्वीरों से अटा हुआ है ?
कहने को तो हम संभ्य है परन्तु अगर विचार करें जो जो सबसे ज्यादा विनती करता हुआ निवेदन है (जिसे कहीं कहीं देख कर ऐसा लगता है की अब उदारवादी धड़े से गरमपंथी अलग हो चुके है )
-"यहाँ पेशाब करना मना है " मैं आपसे शर्त लगा कर कह सकता हूँ की आप समूचे उत्तर भारत का भ्रमण कर आओ और एक भी ऐसा शहर खोज निकालो जहाँ यह विनती चस्पाई न गयी हो । "यहाँ थूकना मना है" यह साथ ही साथ प्रतिस्पर्धा करता हुआ पाया जाता है गोया मानों इंसानों में यह होड़ लगी हो हम थूक कर अपने मुखारविंद से इस शहर को खूबसूरत बना सकता हूँ या,,,,,,,,,समझ तो आप गए ही होंगे ।
"अपनी जान की चिंता कर हेलमेट पहन कर चल " "सीट-बेल्ट बांध कर यात्रा करें " यह भी कुछ महसूर होते जुमलों में शुमार होते जा रहे है । परन्तु मजाल है की हमारे कानो में जूं तक रेंग जाये। अब अगर ऐसे निवेदनो से ही मैं बातें मानना शुरू कर दूँ तो फिर हमारे शहर को ऐसे अनूठे जुमलें कहाँ से पढने को मिलेंगे । कुछ ऐसा ही विचार शायद हमारे बुद्धि वाले मित्रों का हो गया है शायद ।
लेकिन इसमें हमारे जैसे नासमझों का ही सबसे ज्यादा नुकसान होता है ....कभी अगर किसी शोर्ट-कट के चक्कर में कोई गली पकड़ ली तो हो जाती है हमारी छुट्टी। मुझें याद है बचपन में मेरे दोस्त महावीर का चुनाव कुछ इसी तरह से करते थे "कौन सबसे ज्यादा देर तक इस गली में रह सकता है ""कौन उस कोने में खड़ा हो सकता है "
मेरे पुराने शहर में एक गली थी जिसका असली नाम तो शायद मुझे याद भी नहीं पर इतना याद है हम उसे "पेशाब वाली गली " कहा करते थे,क्यूँ ? क्युकी वो उसका खुला ऐलान था मेरे 100 मीटर के दायरे में से भी शांति पूर्वक गुजर कर तो दिखाओ ।
वो दिन बीते ,मैं पटना ,दिल्ली ,मुंबई घूम आया पर ये जुमला मेरा पीछा करता ही रहा । अब मैं सोच रहा हूँ क्या कभी भी ऐसा कोई शहर विकसित होगा यहाँ जहाँ यह विनती न पढने को मिले "यहाँ पेशाब करना मना है"
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