The power of thought

The power of thought

Wednesday, December 5, 2012

किसकी प्रगति ,कैसी प्रगति

भारत की छवि आज  विश्व के सबसे तीव्र गति से विकास करने वाले राष्ट्र की है जो अपनी तकनीकी खूबियों के लिए जग-प्रसिद्ध हो रखा है । और एक भारतीय होने के नाते ये एहसास दिल को गुदगुदाने वाला ही होता है जब पता चलता है की हमारा देश एक मूल्य-प्रधान राष्ट्र है। जिस पश्चिम को हम बचपन से ही लालची समझते आये है जब यह देखते है की वो न्याय के आदर्शों का पालन कर रहा है वाकई में तो यह एहसास अलग सा ही होता है । हिल्टन हो या गुप्ता या हालिया ही कारावास की सजा पाए एक देश के प्रधानमंत्री,जो अपनी लालच के लिए जाना जाता है वही न्याय कर रहा है न की वो जो अपने आदर्श,न्यायिक मूल्यों के लिए जाना जाता है । यहाँ तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जाने वालों को ही सजा होगी । 
किसी तकनीक को बेचना तो जानते है हम परन्तु उसे ईजाद करने का रास्ता भूले बैठे है । सबसे सस्ती कार तो बना सकते है परन्तु पहली कार नहीं । क्या वजह हो सकती है की हम जो सस्ता "आकाश " जमीन पर लाने  की सोचते है तो वो भी एक षड़यंत्र का शिकार हो जाता है । अपने ही पेंशन को पाने को अपने ही  पढाये शिष्यों को रिश्वत देनी पड़े,यह सिर्फ अज के भारत में ही हो सकता है । 
न हम करना चाहते  है न ही सीखना,यही तो वजह हो सकती है ही हमारे धनकुबेरों ने बफेट को दान की सीख न देने की चेतावनी दी वो भी सरेशाम। अमेरिका जैसे धन के लोभी देश से हमे कम से कम अज एक चीज़ तो सिखने की जरुरत है ही ,किस तरह एक छब्बीस वर्षीय नवयुवक सबसे युवा अरबपति बन सकता है और उसी उम्र में अपनी आधी सम्पदा दान कर सकता है । यहाँ तो लोग राडिया टेप के बाहर आने से परेशान हो जाते है न की उसमें की गयी बातचीत से । 
जब तक मूल्यों को खाद न दिया जाये तब तक हम सिर्फ भारत की सिलिकॉन वैली बना सकते है पहली नहीं ।

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