The power of thought

The power of thought

Tuesday, June 19, 2012

सही बात

वह एक गरीब,मेधावी नहीं परन्तु परिश्रमी छात्र था । अपने माता-पिता की तीन संतानों में सबसे बड़ा । दसवीं की परीक्षा में उसे सत्तर फीसदी अंक हासिल हुए। आगे पढ़ाने की चाह में उसके पिता ने अपनी आधी जमीन  गिरवी रख ऋण लिया और उसे महाविद्यालय भेजा ।
प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर भी उसे कहीं रोजगार न मिला । माता-पिता के सपने धुंधले होने लगे।किसी दिन वह कहीं जा रहा था तभी उसने देखा एक घर में आग लग चुकी है अपने साहस  का परिचय देते हुए वह उस आग में छलांग  अंदर फंसे बच्चे को बाहर निकल लाया । लेकिन एक चिंगारी उसकी आँख में चली गयी ।
कुछ दिनों बाद उसका सम्मान समारोह था । वक्ता ने उसकी प्रशंसा करते हुए नकद पुरस्कार की घोषणा की साथ ही उसकी आँखों के उपचार की भी ।
वह वक्ता के कान  में फुसफुसाया "आँख रहने दो एक आँख चली जाएगी परन्तु नौकरी तो मिल जाएगी "
वक्ता को सांप सूंघ गया। पर उसकी बात भी सही थी । भयावह रूप से ही सही पर सही तो थी ही ।
लेकिन क्यूँ?