अंधकार है,घनी रात है
हर तरफ बस हाहाकार है
छा चूका अब राष्ट्र में
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।
जहाँ तलक में देखता हूँ,
प्रकाश का न बाकि निशाँ हैं ।
महावीर निगलती सुरसा का
मुख अब फैला चहुऔर है ।।
छा चूका अब राष्ट्र में
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।
अमावस्या ही सुलभ है
पूर्णिमा अब विलुप्त है
हर अँधेरी रात बाद
फिर एक अँधेरी रात है ।।
छा चूका अब राष्ट्र में
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।
शिव को पूजो शम्भू को पूजो
दुर्गा या काली को पूजो
शापयुक्त महावीर सम्मुख
आना बाकि बस जाम्बवंत है।
छा चूका अब राष्ट्र में
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।
पर होते होते घट जाएगी
यह कालिमा भी हट जाएगी ।
हजारों काली रातों बाद भी
एक धुंधली सुबह तो आयेगी
इन ग्रहणों के बाद भी
नव सूर्य-रश्मियाँ चमचमायेंगी ।
पूर्णता को मिटाने क्या हुआ उदित एक सूर्य है !!!
या
अब भी यह ग्रहण पूर्ण है???
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