The power of thought

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Tuesday, December 18, 2012

"मैं चुप रहूँगा "


जो हो शराबा शोर का
बाजुओं के जोर का
क्रंदना सी झंकार का
तिलमिलाती सीत्कार का
"मैं चुप रहूँगा "

लुट रही हो चाहे कोई
खो कर  अपनी आबरू
न हुआ हूँ न मैं हूँगा
न होगा कोई आज उससे रूबरू
हर किसी का बलात्कार हो
इक या चाहे हजार हो
"मैं चुप रहूँगा "

नग्नता स्वीकार है
चाहे हो मच रहा सीत्कार है
वासना के किस्से सुनूंगा
बस तो फिर भी बस ही है
खुली सड़क का इंतज़ार है
उस सड़क पर मैं भी रहूँगा
हा हा  दिल्ली मैं भी करूंगा
लेकिन न भूलना इस बात को की
"मैं चुप रहूँगा "


3 comments:

  1. the world suffer a lot more due to silence..than due to the voilence....
    but till when ....

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  2. bda swal ye nhi ki kb tk chup rahoge...
    swal ye hai...kya karoge...???????

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