यदि,यह सुहाग की ही निशानी है तो सिर्फ नारी ही क्यों?पति के लिए हो या संतान हेतु भूखी सिर्फ नारी ही क्यों? कोख से अगर पुनः लड़की ही जन्मी तो नारी ही क्यों जल मरे?आश्चर्य है की आज भी अपने प्रेम प्रदर्शन हेतु किसी को भूखा रहना पड़े तो।वो प्रेम ही क्या जो प्रेयसी को तड़पाता रहे।और यदि यह वाकई में प्रेम ही है तो क्या पुरुषों को अधिकार नहीं या उनका कर्त्तव्य नहीं की वो भी अपना प्रेम प्रदर्शित करें? कोई नर अगर करे तो वह आदर्श पति माना जाता है,उसी तरह जैसे कुछेक दयालु अंग्रेज शासकों ने गुलामों के प्रति दयालुता दिखाई।
मुझे जानकारी नहीं और यह स्वीकारने में मुझे हर्ज भी नहीं,परन्तु प्रश्न यह है की यह सारे बंधन महिलाओं पर ही क्यों ?अधिकतर महिलाएं मुझसे सहमत नहीं,उन्हें लगता है यह संस्कृति है पर वह तो सती होने की भी थी।
पुरुष प्रधान समाज में,पुरुष आरोपित मान्यताएं कब तक संस्कृति बन चलती रहेगी? इक्कीसवीं सदी की नारी भी कब तक इस चक्र्व्युःह में फंसती रहेगी ? आखिर कब तक ?
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