रामलोचन शर्मा ब्राम्हणों के अलावा किसी का छुआ हुआ पानी भी नही पीते थे ।
अगली सुबह उन्हें 102' बुखार था ।
"डॉक्टर ,तुम वैसे हो किस खानदान से "
"शर्मा जी...लोग उसे अछूत खानदान कहते हैं , मेरे पिता लाशों को आग दिया करते थे "
"डॉक्टर ...जल्दी से दवा दो , प्राण हैं की छुटने को निकल रहे हैं "
और शर्मा जी ने डॉक्टर के हाथ से दवा पीकर चैन पाया ।
अगली सुबह उन्हें 102' बुखार था ।
"डॉक्टर ,तुम वैसे हो किस खानदान से "
"शर्मा जी...लोग उसे अछूत खानदान कहते हैं , मेरे पिता लाशों को आग दिया करते थे "
"डॉक्टर ...जल्दी से दवा दो , प्राण हैं की छुटने को निकल रहे हैं "
और शर्मा जी ने डॉक्टर के हाथ से दवा पीकर चैन पाया ।
No comments:
Post a Comment