The power of thought

The power of thought

Sunday, March 4, 2012

वो थी कूड़े के ढेर पर

चीखती,लहरती दोपहर में 
बरसा कर अपने कहर को 
हो उन्मुक्त जब सूरज छा रहा था
वो थी कूड़े के ढेर पर ।।

कर पैदा बना लावारिस 
फेंक कर उस ढेर पर 
जब लौट चूका था उसका जन्मदाता 
रो रही थी वो उस कूड़े के ढेर पर ।।

मनमोहती,खिलखिलाती 
गोधुली के उस पहर में,
लौटती कारों के बीच
थी बिलखती वह कूड़े के ढेर पर ।।

सभ्यता की दे दुहाई 
हैं समाज बन दुश्मन बैठा 
जिसकी न थी कोई गलती 
वो क्यूँ पड़ी थी कूड़े के ढेर पर ।।

रात्रि के अंतिम प्रहर में 
मार समाज के मुहं पर चांटा 
बन के आए मुक्तिदाता
 नोच खाया उस नन्ही जाँ को

चीख से दहली थी दिल्ली 
फिर क्यों नहीं थी कोई रूह कांपी ?

बन के एक श्वान  ग्रास
हुआ निवारण उसका त्रास

खाली था अब कूड़े का वो ढेर ।
पर थी कभी पड़ी वो उस कूड़े के ढेर पर 



2 comments:

  1. really touching....!! mgr kuch kami hai jo thik kr skte ho.

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  2. thanks for your appreciation.
    Please keep contributing your valuable suggestions You can even mail me your suggestions

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