राष्ट्र उत्थान हेतु,
था लगा कुबेरों का मेला
वहां आ पहुंचा एक भिखारी लिए अपना थैला मटमैला ।
नब्बे फीसदी दान करने वाले
बड़े कुबेर ने थी ज्यों अपनी आँखे तरेरी,
छोटे सभी कुबेरों ने उस गरीब की बाँहें मरोड़ी
"अब यहाँ ऐसा क्या बचा जो तू देगा,
या तू यहाँ से भी भीख ही लेगा "
निर्धन उस भिखारी ने खोल थैला
सौंप दिया अपना कलेजा ।
उसकी वहीँ मौत हो गयी
धनकुबेरों की शाम ने न आयी कोई परेशानी
भारतमाता के कलेजे में एक फांस हो गयी ।।
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