घर । किसी इन्सान की मूलभूत आवश्यकता तो किसी के लिए मुनाफा कमाने का सबसे सरल साधन । रोटी-कपडा-मकान इनमें से कोई भी एक न हो तो जीवन अधुरा सा लगता है , वहीँ कुछ के पास एक नहीं दो नही बल्कि दस-दस मकान रहते है । जी नहीं ,रहने के लिए नहीं बल्कि इस लिए की वो किसी जरुरत मंद को वो मकान कहीं ऊँचे दाम पैर बेचकर बेलगाम मुनाफा कम सके।
भारत में यदि कोई व्यवसाय तयशुदा मुनाफा का वादा करता है , क्रिकेट के अलावा तो वो है रियल-एस्टेट का ।जैसे जैसे भारत की आबादी बदती जाएगी और बदती जाएगी इनकी क्रय-शक्ति और टूटती जाएँगी संयुक्त परिवार की परंपरा वैसे ही बदती जाएगी यहाँ अपने घर की तलाश ।जहाँ दिल्ली,मुंबई जैसे महानगरों और इनके उपग्रह शहरों में सम्पति खरीदने की सोचा भी भी दुश्वार होता जा रहा है वहीँ पटना,पुणे और इलाहाबाद में भी मकान की कीमते उसेन बोल्ट से प्रतिस्पर्धा कर रही है । एक सरकारी अफसर के मुताबिक "घर का सौदा अगर क़ानूनी तरीकों से ही हो तो आम आदमी 20 लाख में ही वह घर ले सकता है जिसके लिए उसे अभी 50 लाख देने पड़ रहे है,लेकिन ध्यान कौन दे ?
जिस तरह भोजन के अधिकार को ध्यान में रखते हुए राशन की कालाबाजारी को संगीन अपराध माना गया है जरुरत है उसी तरह रियल-एस्टेट के काला -बाजारी को भी संगीन बनाने का ।कोई भी इन्सान 1 से अधिक मकान नहीं खरीद सकता ,सम्पति के सरे लेन-देन को चेक के या प्लास्टिक मनी के माध्यम से से मान्यता मिले जिस से सर्वोच्च बैंक इन सभी हस्तांतरण की निगरानी कर सके ।साथ ही ये बात भी सुनिश्चित हो की जितनी रकम की रजिस्ट्री करवाई गयी हो उस के अतिरिक्त और कुछ भी लेन-देन न हो।
सुनने और पढने में भले ही यह काफी आदर्श प्रतीत हो और लागु करने में असंभव सा प्रतीत हो यह ध्यान करने योग्य है की यह प्रतीत ही हो रहा है असंभव है नहीं । और वैसे भी जिस देश की आधी से ज्यादा आबादी अगर कुछ पाने से वंचित है तो उस देश को भागीरथी प्रयास से कम क्या करना होगा?
भारत में यदि कोई व्यवसाय तयशुदा मुनाफा का वादा करता है , क्रिकेट के अलावा तो वो है रियल-एस्टेट का ।जैसे जैसे भारत की आबादी बदती जाएगी और बदती जाएगी इनकी क्रय-शक्ति और टूटती जाएँगी संयुक्त परिवार की परंपरा वैसे ही बदती जाएगी यहाँ अपने घर की तलाश ।जहाँ दिल्ली,मुंबई जैसे महानगरों और इनके उपग्रह शहरों में सम्पति खरीदने की सोचा भी भी दुश्वार होता जा रहा है वहीँ पटना,पुणे और इलाहाबाद में भी मकान की कीमते उसेन बोल्ट से प्रतिस्पर्धा कर रही है । एक सरकारी अफसर के मुताबिक "घर का सौदा अगर क़ानूनी तरीकों से ही हो तो आम आदमी 20 लाख में ही वह घर ले सकता है जिसके लिए उसे अभी 50 लाख देने पड़ रहे है,लेकिन ध्यान कौन दे ?
जिस तरह भोजन के अधिकार को ध्यान में रखते हुए राशन की कालाबाजारी को संगीन अपराध माना गया है जरुरत है उसी तरह रियल-एस्टेट के काला -बाजारी को भी संगीन बनाने का ।कोई भी इन्सान 1 से अधिक मकान नहीं खरीद सकता ,सम्पति के सरे लेन-देन को चेक के या प्लास्टिक मनी के माध्यम से से मान्यता मिले जिस से सर्वोच्च बैंक इन सभी हस्तांतरण की निगरानी कर सके ।साथ ही ये बात भी सुनिश्चित हो की जितनी रकम की रजिस्ट्री करवाई गयी हो उस के अतिरिक्त और कुछ भी लेन-देन न हो।
सुनने और पढने में भले ही यह काफी आदर्श प्रतीत हो और लागु करने में असंभव सा प्रतीत हो यह ध्यान करने योग्य है की यह प्रतीत ही हो रहा है असंभव है नहीं । और वैसे भी जिस देश की आधी से ज्यादा आबादी अगर कुछ पाने से वंचित है तो उस देश को भागीरथी प्रयास से कम क्या करना होगा?
rightly said....real estate sector has emerged as one of the largest medium for money laundering and consequent corruption. Indeed it is high time for making Right to housing as fundamental right, then only right to life will be achieved in true sense...herculean task but development do demand accepting such challenges..........by the way good piece of writing pranav......keep it up
ReplyDelete