The power of thought

The power of thought

Sunday, August 25, 2013

धक्का

 दिल्ली की सड़कों पर आज एक ठेले वाले को ठेला चलाते देखा , जिसमें नयापन कुछ भी नहीं । पर एक चढाई पर जा कर वो फंस गया और लाचार सा यहाँ वहां देखने लगा । पर उसके पीछे एक महिला बैठी थी सो लोग उसे सलाह दे रहे थे की " उतार इस औरत को , और कर ले पार " इस पर उस महिला ने पूछा "बेटा , उतर जाऊ ?"उसने कहा "न मैय्या , बैठी रह तू,।खिञ्च लूँगा । "
तो मैं , शर्मिंदा क्या करता?
गया , और जा कर धक्का दे आया । 

Friday, August 16, 2013

तेरा प्यार

 तू है अनमोल,यह मानता हूँ ,
 और जो है तेरे दिल में एक दर्द वह भी मैं जानता हूँ 
नहीं तू चाहती मुझको,यह भी स्वीकारता हूँ ,
 और न कभी चाहेगी मुझको, यह भी अब जानता हूँ 
भुलाने को तुझको यह दिल खंगालता हूँ 
लेकिन दिल ही नहीं रूह में भी,बस तुझको ही अब पाता हूँ 
क्या करूं मैं ,जो सिर्फ तुझको ही चाहता हूँ  ॥ 

था माँगा भी,तो क्या माँगा मैंने ?
 संग तेरे दो पल ही तो बिताना चाहा मैंने,
खुद से भी ज्यादा है, तुझको अब चाहा मैंने  
लिए तेरे ही अब न जाने,कितने अश्क बहाए मैंने । 
तू है नहीं मेरी ,खुद को यह भी समझाया मैंने ,
पर दिल ही दिल ,सिर्फ तुझको ही तो है चाहा मैंने ॥ 

नहीं वो उसका ,
यह जानते भी तो चकोर, चाहता बस चाँद है 
और बजाये खोने, पतंगा उसी प्यार में हो जाता होम है । 
तो अब मैं भी हूँ यह चाहता की , जो तू न चाहे मुझको 
तो इससे पहले की खो दूँ तुझको ,तेरे प्रेम में ही होऊं  भस्म ॥ 

तोड़ तेरा दिल भी जो तुझको याद है 
कर यकीं वह वाकई में होगा खास है । 
क्यूंकि होना तेरे दिल के पास अपने आप ही एक बात है । 

जो मिले खुदा आज तो बस चाहता यही हूँ मांगना 
की जो वाकई ही मैं उसकी ही संतान हूँ 
तो आज वो एक सबूत दे 
मेरी ज़िन्दगी में , बस थोड़ा सा तेरा प्यार दे ॥ 

Saturday, August 10, 2013

खुद से ज्यादा

नहीं जानता मैं , की क्या है तू जानती 
लेकिन चाहता तुझे ही , अब तो हर वक़्त हूँ  । 
और ये कविता भी तो 
बस तुझे समझाने का एक बहाना है । 

चाहता तेरे हूँ संग कहीं जाना 
कभी हो खाना तो कभी घूमना 
पर मकसद ये हरगिज़ नहीं, ये समझ ले 
हूँ चाहता संग तेरे बस कुछ पल बिताना ॥ 
हूँ चाहता तेरी ज़िन्दगी के तेरे ही कुछ खास 
 पल चुरा लूँ ,और चुरा उन्हें अपना
 बस अपना बना लूँ ॥ 

 हूँ चाहता तुझे मैं देखना 
देखना तुझे जब तू हँसे ,उंगलियों से 
अपनी लटों से खेले , देखू तुझे जब तू होंठ भींचे 
जब तू अपने नयन समेटे 
या जब कमलों सा उनको हौले से खोले ,
चाहता हूँ बनना ,मैं चोर उन पलों का 
जिन पर सिर्फ तेरा ही अधिकार है ॥ 

जानता हूँ यह भी , की तू खास है 
जोकि आशिक बना तेरा खुदा भी आज है 
मेरा नही कोई वजूद है ,लेकिन 
 प्रेम ही जो सिर्फ बात हो 
तो कर यकीं की 
खुद से ज्यादा, चाहा है तुझको ॥ 


Friday, August 9, 2013

"वेदों की सूक्तियाँ "

सत या असत , झूठ या सांच 
माने तू या माने न मेरी ये बात 
पर सिर्फ तेरी ही सोचूं मैं अब दिन और रात । 
याद  क्यूँ है तेरी हर वो बात,
शायद हुआ हूँ पागल या हो गया बावरा 
री पर, बोल इसमें मेरा कसूर क्या ?

तू है इत्ते पास मेरे की   
हूँ वाकई , मैं बस सोचता … 
पाप था या पुण्य जो तुझो मिला 
जो मिली तू तो वह पुण्य था 
जो खोयी अब सी हो दुभाग । 
 नहीं चाहता हूँ तुझे,किसी और से बाँटना 
लगता माना खुदगर्ज हूँ ,पर तो 
री ,इसमें मेरा कसूर क्या ?

मेरी शंका निर्मूल हो यह चाहता है प्रेम मेरा 
तो हो मेरी सिर्फ, है मांगता अब दिल मेरा । 
देखा नही खुदा था , सिर्फ धुआं जलाता था 
पर भेज तुझे उसने मंत्र भी गँवा दिए 
अब तो है मेरी  पनाह मांगती 
हर वक़्त तू ही तू …बस तू है 
"वेदों की सूक्तियों " सी गूंजती  

Tuesday, August 6, 2013

निवेदन : प्रेम का

शायद जो है तुझे पाया आधा 
वो खोने का पूरा डर सताता है 
तभी 
रात इस वक़्त भी 
हूँ मैं कुछ खोजता सा । 
अब तो आधी नींद भी 
है क्यूँ गायब तू ये बता ,
शायद तुझे खोने का है वो डर । 

है मन में तेरे क्या 
ये तो  नहीं मैं जानता 
सो खुद खुदा ख्वाबों में तेरे 
आ कर दे बयां , हूँ यह चाहता 
करूं क्या वे कहूँ क्या 
अब तक हूँ यह ही सोचता 
क्यूंकि तुझे मैं खोना नही हूँ चाहता ॥ 

दोस्ती से आगे तेरे तैरने को हूँ बढ़ा 
पर रे ,इस नौका की पतवार तू ही चला 
चला पतवार अब ये नाव अटकती है 
कुछ तो बोल दे के ये साँसे अटकती है 

यह प्रसंग पहली हूँ लिख रहा 
जो तू समझे मानो हो दिलबरा ॥