The power of thought

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Sunday, January 31, 2010

शाकाहार सर्वश्रेस्ठ, आहार

जैसे विष-युक्त आहार हमारे शरीर मे भयंकर विकार उत्पन्न करता है वैसे ही विकार-युक्त विचार भी हमारे मष्तिस्क मे प्रवेश कर भयंकर दुःख, अशांति और असाध्य रोग उत्पन्न करते हैं | अतः: यदि हम एक ऊँचा व्यक्तित्व पाना चाहते हों तो आहार और विचारों के प्रति प्रतिपल सजग रहना होगा | व्यक्ति अपने शरीर के प्रति जितनी बेरहमी बरतता है शायद इतनी बेरहमी वह किसी के साथ नहीं करता |
  यह शरीर देवालय है शिवालय है .....ईश्वर का निवास स्थान है .........इसे शराब पीकर , तम्बाकू और मांस खा कर शमशान या कब्रिस्तान  नहीं बनाये |
   जैसे इस दुनिया मे हमे जीने का हक़ है , वैसे ही सृष्टि  के अन्य प्राणियों को भी इस धरती पर निर्भय होकर जीने  का हक़ है , यदि हम किसी जीव को पैदा नै कर सकते तो उसे मार कर  कर खा कैसे सकते है ...यह अधिकार हमे किसने दिया है........की हम किसी भी जीव की हत्या कर दे ........विचारनीय तथ्य  यह है की हम उन जीवो की हत्या इसलिए कर देते है क्युकी वो देखने मे हमारे जैसे नहीं लगते |
वैसे तो सब प्राणियों के पास  दिल और  दिमाग होता है     .........और वो जीना भी चाहते है ...उन्हे भी पीड़ा महसूस होती है ...यह हम उनके रोने से .....चीख से ..अपनी जान बचने की गुहार से महसूस कर सकते है.....पर शायद आज किसी के पास उतना समाया नहीं की वो .........उन जीवो की पुकार पर गौर करे .........क्या हम उन्हें सिर्फ इसलिए मार दे क्युकी उनके पास अपनी रक्षा को हथियार नहीं है .....या लोकतंत्र के इस युग मे उनके पास मतदान करने का अधिकार नहीं ...उनकी सिर्फ इस गलती के लिए हम उनकी बलि कैसे दे सकते है ......सिर्फ इसलिए की वो इंसानी आवाज मे अपने अधिकारों के मांग नहीं कर सकते ......हम बेरहमी से  निरपराध , निरीह , मूक प्राणियों की हत्या करते रहेंगे .....और दरिंदगी के साथ ..जानवरों और राक्षसों  की तरह उनका मांस नोच-नोच कर खाने मे गौरव महसूस करते है ..इससे ज्यादा बड़ा घोर पाप और अपराध दूसरा कुछ नहीं  हो सकता |

       ये खुद से पूछने का वक़्त है क्या वाकई हम बिना मांसाहार के जीवन नहीं बिता  सकते ...अगर नहीं तो हममे और जानवरों मे क्या अंतर बाकि रह जाता है 

जब हम शाकाहार से अपना जीवन बिता सकते हैं तो क्यों उन निरीह प्राणियों की हत्या के पाप के भागी  बने  ?
मनुष्य  शरीर की संरचना शाकाहारी  प्राणी  की है ...यह एक वैज्ञानिक  सत्य   है 

इन्सान बनिए .... मांसाहार से तौबा कीजिये