इस कदर है क्यूँ सोचता तू?
खुद को उनसे है क्यों तौलता तू ?
उनकी थाली होगी ही लाखों में
है चिंता तेरी ही बस उनकी ही बातों में
व्यर्थ ही तू है चिंता में गला जा रहा
उनका विमान तेरे ही लिए तो ,
है सात समंदर पार जा रहा ।
तेरी उन्नति को ही सभाएं होंगी
जिसमें उनके इर्द-गिर्द परिचारिकाएं होंगी
तू सोचता है इसमें उनका फायदा है
"हे मुर्ख! वो तो तेरे सेवक हैं जो तेरे
सिर्फ तेरे ही तरफ से उन सेवाओं का लुत्फ़ लेते है "
पर हे जालिम,निर्दयी,खुदगर्ज
तुझे क्यूँ नही हैं उनकी खुशियाँ गंवारा ??
यकीं कर उनकी सुविधाओं का कोई अंश तेरी भी झोली में आएगा
करदाताओं का कर यूँ ही न थोड़े जायेगा ।
तब तक तू इंतज़ार कर
अपनी फटी धोती का ही उपयोग कर
याद रख वो सेवक तू स्वामी है
भूख,पीड़ा,दरिद्रता का तू ही तो वारिश है
पर यदि यह तुझे स्वीकार न हो
कर परिश्रम,उठ बन महान
शामिल हो ले उन सेवकों संग
पर याद रख
"जो तुने भी मुहं मोड़ा तो वो पल भी आएगा
जब काल की कालिमा से तू खुद तेरी
गर्दन नपवायेगा "
और "यह " खड़ा हो
जोर जोर से नारे लगाएगा और तालियाँ बजाएगा ।।
good piece of writing... i think it says all about going for a win-win situation in our endeavors and keep up the hopes... good job pranav...
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