The power of thought

The power of thought

Friday, September 28, 2012

"यह "तालियाँ बजाएगा

इस कदर है क्यूँ सोचता तू?
खुद को उनसे है क्यों तौलता तू ?

उनकी थाली होगी ही लाखों में 
है चिंता तेरी ही बस उनकी ही बातों में 
व्यर्थ ही तू है चिंता में गला जा रहा
उनका विमान तेरे ही लिए तो ,
है सात समंदर पार जा रहा ।

तेरी उन्नति को ही सभाएं होंगी 
जिसमें उनके इर्द-गिर्द परिचारिकाएं होंगी 
तू सोचता है इसमें उनका फायदा है 
"हे मुर्ख! वो तो तेरे सेवक हैं जो तेरे 
सिर्फ तेरे ही तरफ से उन सेवाओं का लुत्फ़ लेते है "

पर हे जालिम,निर्दयी,खुदगर्ज 
तुझे क्यूँ नही हैं उनकी खुशियाँ गंवारा ??
यकीं कर उनकी सुविधाओं का कोई अंश तेरी भी झोली में आएगा 
करदाताओं का कर यूँ ही न थोड़े जायेगा ।

तब तक तू इंतज़ार कर 
अपनी फटी धोती का ही उपयोग कर 
याद रख वो सेवक तू स्वामी है 
भूख,पीड़ा,दरिद्रता का तू ही तो वारिश है 

पर यदि यह तुझे स्वीकार न हो 
कर परिश्रम,उठ बन महान 
शामिल हो ले उन सेवकों संग 

पर याद रख 
"जो तुने भी मुहं मोड़ा तो वो पल भी आएगा 
जब काल की कालिमा से तू खुद  तेरी 
गर्दन नपवायेगा "
और "यह " खड़ा हो 
जोर जोर से नारे लगाएगा और तालियाँ बजाएगा ।।

1 comment:

  1. good piece of writing... i think it says all about going for a win-win situation in our endeavors and keep up the hopes... good job pranav...

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