The power of thought

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Sunday, December 30, 2012

बलात्कार एक बात


आज भी 
चिंतित नहीं हूँ मैं ,
जरा भी नहीं 
रोम-रोम 
मेरे आज भी 
कम्पन विहीन है ।।
प्रयास !!
पूरा था,
पर जो मजाल हो 
मेरी किन्ही 
आँखों में 
आयें आंसू एक बूंद हो ?
उपवास!!
सोचा था ,
लेकिन, पल बीतते 
क्षुदा-पूर्ति को 
खाना तो था ही ।
विरोध !!
करना तो था ,
लेकिन 
घर-के ,बाहर के, ऑफिस के,
देश के,राज्य के,विदेशों के 
ख़बरों को समय देना भी तो 
मज़बूरी है ।
नौकरी तो निभानी है,
विरोध !!
वो तो होता रहेगा ।।

पर किस बात का मुझको मलाल हो?
जुझारू क्यों कर अब मेरे जज्बात हो ?
क्या??
बलात्कार!       हत्या!    इन्साफ 
मेरे भाई 
जगतगुरु के इस देश में अब 

बलात्कार ! रोज मर्रा की ही बात है ।




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