शायद जो है तुझे पाया आधा
वो खोने का पूरा डर सताता है
तभी
रात इस वक़्त भी
हूँ मैं कुछ खोजता सा ।
अब तो आधी नींद भी
है क्यूँ गायब तू ये बता ,
शायद तुझे खोने का है वो डर ।
है मन में तेरे क्या
ये तो नहीं मैं जानता
सो खुद खुदा ख्वाबों में तेरे
आ कर दे बयां , हूँ यह चाहता
करूं क्या वे कहूँ क्या
अब तक हूँ यह ही सोचता
क्यूंकि तुझे मैं खोना नही हूँ चाहता ॥
दोस्ती से आगे तेरे तैरने को हूँ बढ़ा
पर रे ,इस नौका की पतवार तू ही चला
चला पतवार अब ये नाव अटकती है
कुछ तो बोल दे के ये साँसे अटकती है
यह प्रसंग पहली हूँ लिख रहा
जो तू समझे मानो हो दिलबरा ॥
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