नहीं जानता मैं , की क्या है तू जानती
लेकिन चाहता तुझे ही , अब तो हर वक़्त हूँ ।
और ये कविता भी तो
बस तुझे समझाने का एक बहाना है ।
चाहता तेरे हूँ संग कहीं जाना
कभी हो खाना तो कभी घूमना
पर मकसद ये हरगिज़ नहीं, ये समझ ले
हूँ चाहता संग तेरे बस कुछ पल बिताना ॥
हूँ चाहता तेरी ज़िन्दगी के तेरे ही कुछ खास
पल चुरा लूँ ,और चुरा उन्हें अपना
बस अपना बना लूँ ॥
बस अपना बना लूँ ॥
हूँ चाहता तुझे मैं देखना
देखना तुझे जब तू हँसे ,उंगलियों से
अपनी लटों से खेले , देखू तुझे जब तू होंठ भींचे
जब तू अपने नयन समेटे
या जब कमलों सा उनको हौले से खोले ,
चाहता हूँ बनना ,मैं चोर उन पलों का
जिन पर सिर्फ तेरा ही अधिकार है ॥
जानता हूँ यह भी , की तू खास है
जोकि आशिक बना तेरा खुदा भी आज है
मेरा नही कोई वजूद है ,लेकिन
प्रेम ही जो सिर्फ बात हो
तो कर यकीं की
खुद से ज्यादा, चाहा है तुझको ॥
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