The power of thought

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Sunday, September 8, 2013

पर्व : सम्बन्ध या स्वार्थ

                                                 

"सजना है मुझे सजना के लिए "  क्यों भाई , सजनी के लिए सजना क्यूँ नहीं सज सकते ? मुझे भी नहीं पता । खैर सवाल यह नहीं , सवाल मान्यताओं का है । तीज जो आज एक दिव्य पर्व रूप में मनाया जा रहा है , सिर्फ महिलाओं के लिए ही क्यों ? क्यों सिर्फ महिलाओं को ही उनके पतियों की लम्बी उम्र की कामना हो । आखिर ये पति लोग अपनी पत्नी की लम्बी उम्र क्यों नहीं चाहते ? बड़ा ही हास्यास्पद सवाल , पर जवाब क्या होगा ?
 पुरानी मान्यता है जी, … वगैरा -वगैरा  । तो जी पुरानी है तो हम अभी तक क्यों ढो रहे है ?
चीज़ें अच्छी कितनी भी रही हो , पुरानी तो कूड़े में ही जाती है न , वर्ना सड़ांध आनी तय है । हद है , अपने प्राण से प्यारों को भी उनके प्राण निकलने के बाद हम जला आते है , तो इन विचारों को क्यों पाले रख समाज को सड़ा सूंघा रहे है ।
मेरे पिछले विचार पर बड़ी गालियाँ पड़ी, पर मजा तो इस बात का आया की महिलाओं की तरफ से । पुरुषों को तो फर्क भी नहीं पड़ता ।
और एक सवाल यह भी की आखिर जब मेरे बीमार होने पर दवाई मुझे ही खानी पड़ेगी तो यहाँ पत्नी के खुद को कष्ट पहुँचाने से पति की आत्मा को थोड़ी जमानत कैसे मिल जाती है । हो सकता है अपनी सबला पत्नी को शांत देख सुकून से । पर गंभीरता तो कहती है की यह मंथन का विषय है । क्या यह आज भी औरतों को  दोयम दर्जे का ही मानने का संकेत नहीं ? और आश्चर्य तो इस बात का की आज की आधुनिक नारी भी इस अवैज्ञानिक …… क्या ? अवैज्ञानिक नहीं ? तो ठीक है फिर तो पुरुषों को भी करना चाहिए , आखिर कोई महिला उस पुरुष के लिए क्यों भूखी रहे जो उसकी लम्बी उम्र नहीं चाहता । " तुम मेरे लिए भूखे रहो मैं तुम्हारे लिए । ""तुम मेरी उम्र लम्बी करो , मैं तुम्हारी " और अगर कोई पति इस पर तैयार नहीं होता तो जाये चूल्हे में ऐसा पति , उसके लिए क्यों खुद को कष्ट देना , उसके लिए अपना घर छोड़ आयी जो तुम्हे जिंदा ही नहीं देखना चाहता ।
पर जब तक महिलाएं खुद ही खुद को इन बेड़ियों में जकड़े रखेंगी तो वो सशक्तिकरण की बात भी कैसे कर सकती है ? इनको नकारना संवेदनाओं या संबंधों को नकारना नहीं , जो हमारी संस्कृति की पहचान है , बल्कि साधारण मानवता है । और शर्म तो उस पुरुष वर्ग को आनी चाहिए जो खुद को जीवित रखने हेतु अपनी पत्नी को मार रहा है । और अगर इस व्रत के न होने से उम्र थोड़ी कम भी हो गयी तो किस बात का गम , इसकी ख़ुशी तो रहेगी " ताउम्र खुशियों का जिससे वादा किया था , उसे खुद के स्वार्थ को कभी भूखा नहीं रहा ।" 

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