The power of thought

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Friday, August 9, 2013

"वेदों की सूक्तियाँ "

सत या असत , झूठ या सांच 
माने तू या माने न मेरी ये बात 
पर सिर्फ तेरी ही सोचूं मैं अब दिन और रात । 
याद  क्यूँ है तेरी हर वो बात,
शायद हुआ हूँ पागल या हो गया बावरा 
री पर, बोल इसमें मेरा कसूर क्या ?

तू है इत्ते पास मेरे की   
हूँ वाकई , मैं बस सोचता … 
पाप था या पुण्य जो तुझो मिला 
जो मिली तू तो वह पुण्य था 
जो खोयी अब सी हो दुभाग । 
 नहीं चाहता हूँ तुझे,किसी और से बाँटना 
लगता माना खुदगर्ज हूँ ,पर तो 
री ,इसमें मेरा कसूर क्या ?

मेरी शंका निर्मूल हो यह चाहता है प्रेम मेरा 
तो हो मेरी सिर्फ, है मांगता अब दिल मेरा । 
देखा नही खुदा था , सिर्फ धुआं जलाता था 
पर भेज तुझे उसने मंत्र भी गँवा दिए 
अब तो है मेरी  पनाह मांगती 
हर वक़्त तू ही तू …बस तू है 
"वेदों की सूक्तियों " सी गूंजती  

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