सत या असत , झूठ या सांच
माने तू या माने न मेरी ये बात
पर सिर्फ तेरी ही सोचूं मैं अब दिन और रात ।
याद क्यूँ है तेरी हर वो बात,
शायद हुआ हूँ पागल या हो गया बावरा
री पर, बोल इसमें मेरा कसूर क्या ?
तू है इत्ते पास मेरे की
हूँ वाकई , मैं बस सोचता …
पाप था या पुण्य जो तुझो मिला
जो मिली तू तो वह पुण्य था
जो खोयी अब सी हो दुभाग ।
नहीं चाहता हूँ तुझे,किसी और से बाँटना
लगता माना खुदगर्ज हूँ ,पर तो
री ,इसमें मेरा कसूर क्या ?
मेरी शंका निर्मूल हो यह चाहता है प्रेम मेरा
तो हो मेरी सिर्फ, है मांगता अब दिल मेरा ।
देखा नही खुदा था , सिर्फ धुआं जलाता था
पर भेज तुझे उसने मंत्र भी गँवा दिए
अब तो है मेरी पनाह मांगती
हर वक़्त तू ही तू …बस तू है
"वेदों की सूक्तियों " सी गूंजती
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