The power of thought

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Saturday, September 14, 2013

अबूझा

"हद है भाई , इतनी भीड़ में ये लोग जो देख भी नहीं सकते ,  कैसे घुसे चले आते है सफ़र करने को ? और तिस पर इनके परिवार वाले इन्हें दिल्ली जैसी जगह में अकेले कैसे भेज सकते हैं ? किसी ने ठेका थोड़े ही ले रखा है , इन अन्धो का । " दिल्ली की बस में सफ़र करता हुआ वह १ अंधे की असहजता पर भड़का हुआ था, और उसे यह भी नहीं पता की वो आखिर भड़का क्यों ?
जवाब उसे थोड़ी देर में सारे सवालों का खुद ही मिल गया , जब बस स्टैंड से उस अंधे को उसके घर तक वह हाथ पकड़ छोड़ आया ॥

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