ज्यों गिरते विचार हैं
बाहर उत्ते ही खतरे अपार हैं ।
तो
हे प्रभु ! अबकी मुझे बेटी न दीजो ।।
संसार में खतरे या खतरों में संसार है?
भेडियों को भेड़ों का जहाँ बारम्बार प्रणाम है
शेयर बाजार से ज्यादा
जहाँ
बलात्कार का कारोबार है ।
उस धरती पर,
हे प्रभु ! अबकी मुझे बेटी न दीजो ।।
जहाँ लोग खुद को
खुद ही
अंगीकृत विधान करते आत्मार्पित हो ,
एवं
न्याय,स्वतंत्रता,समता व् बंधुता की
हो रही जिसमे बात हो
उस पावन ग्रन्थ रचियता धरती पर
बिलकुल भी,
हे प्रभु ! अबकी मुझे बेटी न दीजो ।।
पर,मेरा खुद का भी तो संसार है
खुशियाँ पाना मेरा भी अधिकार है
और बेटी से पावन मुझको
मिल सकता क्या उपहार है ?
बल दे पाना ही तो मेरा पुरषार्थ है
ज्ञान,बल,कौशल जो प्रदान हो
तो
हे प्रभु ! अबकी एक बेटी दे ही दीना ।।
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