The power of thought

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Sunday, December 30, 2012

बलात्कार एक बात


आज भी 
चिंतित नहीं हूँ मैं ,
जरा भी नहीं 
रोम-रोम 
मेरे आज भी 
कम्पन विहीन है ।।
प्रयास !!
पूरा था,
पर जो मजाल हो 
मेरी किन्ही 
आँखों में 
आयें आंसू एक बूंद हो ?
उपवास!!
सोचा था ,
लेकिन, पल बीतते 
क्षुदा-पूर्ति को 
खाना तो था ही ।
विरोध !!
करना तो था ,
लेकिन 
घर-के ,बाहर के, ऑफिस के,
देश के,राज्य के,विदेशों के 
ख़बरों को समय देना भी तो 
मज़बूरी है ।
नौकरी तो निभानी है,
विरोध !!
वो तो होता रहेगा ।।

पर किस बात का मुझको मलाल हो?
जुझारू क्यों कर अब मेरे जज्बात हो ?
क्या??
बलात्कार!       हत्या!    इन्साफ 
मेरे भाई 
जगतगुरु के इस देश में अब 

बलात्कार ! रोज मर्रा की ही बात है ।




Thursday, December 27, 2012

ये सुलझाने से आगे है



स्याह,सुर्ख से आगे है 
ये सुलझाने से आगे है 
उलझन में उलझन भर जाये है 
चूहा बिल्ली को खाए है 
सागर में बादल ते दिख जाये है 
आसमान में नाव उड़ जाये है 
यह स्याह सुर्ख से आगे है ।।

जो काले से भी काला हो 
वो काला जो उजियारे को भी 
कर जाता काला हो ।
नीला हो जाता काला है 
पीला हो जाता काला है 
पर काला तो खुद में काला है 
 ये सुलझाने से आगे है 
यह स्याह सुर्ख से आगे है ।।

तेजी से है यह बढता जाता
नीचे से उपर , मानो 
यों है उड़ता जाता । 
 फैलता विष फैलता है 
सिकुड़ता न जाने क्यों है ?
कल वहां है कल वहां है 
कल वहां भी है 
ये सुलझाने से आगे है 
यह स्याह सुर्ख से आगे है ।।

Sunday, December 23, 2012

उफान ,दूध और हम

                                                                       
यह जो है यह उफान है ठीक वैसा ही जैसा दूध में आता है । पर यह कब आता है तब जब दूध पूर्णतः गर्म हो चूका होता है, यहाँ से वापस जाने का कोई मार्ग नहीं पर सामने भी कोई एक सरल मार्ग नहीं । दूध में इस वक़्त पानी के कुछ छींटे मारे जाते है परिणामतः दूध अपना उफान शांत कर शांत हो जाता है ,पर कभी जब किसी का ध्यान न हो यह दूध उफनता बाहर आ जाता है और एक आखिरी परिस्थिति में वो आग जो इसे ऊष्मा दे रही होती है उसे ही बुझा दिया जाता है ।
आज दिल्ली में आग पर दूध ही है,जो हर तरह से उफान मार रहा है और स्पष्ट है की अब तीन मार्ग ही संभव है क्योंकि प्रतीत तो यही होता है की ऊष्मा तो ग्रहण हो ही गयी है । और यह ही संभव है यहाँ से की सरकार आरोपियों को जनता के अनुरूप सजा सुनाने को तैयार हो जाएगी और यह उफान शांत हो जायेगा ।
झारखण्ड में कल उफान मार रहे दूध ने 5 जीवाणुओं को समाप्त कर दिया । सन्देश स्पष्ट है की अब इस देश में यह स्वीकार्य नहीं,हर वह नौजवान जो उसी जाती से सम्बधित्त है जो की कसूरवार है आज इस उफान में खुद को पाक साफ कर रहा है । तो हम यह मान सकते है की वहाँ दूध बाहर आ गया ,काफी सारे सम्मानीय लोगो ने इसकी सराहना भी की परन्तु प्रश्न यह भी तो बनता है की क्या समाज को खुद ही इन्साफ करने का अधिकार मिल गया है ? आज यह लाखो लोगो की भावनाओं के समर्थन से साकार है अतः कोई भी इसके औचित्य पर सवाल तक नहीं करेगा परन्तु कल क्या होगा? आज यह गलत के खिलाफ है तो यह असंभव कदापि नहीं की कल गलत के विरोध में उठ रहे स्वरों के भी दबा न दिया जाये । भीड़ का इन्साफ सदैव ही सही होता तो मानव आज सभ्य होने का स्वांग न भर रहा होता ।
पर एक परिस्थिति और भी है यहाँ, यह दूध जो दिल्ली में उफान मार रहा है इस वक़्त का संपर्क आग से काट दिया जाये तो उस समय क्या होगा ? पर मुझे खुद ही संदेह है की यह कोई कारगर उपाय होगा । परन्तु मूल प्रश्न तो कुछ और ही है। इस के बाद जब पुनः हवसी बाहर निकलेंगे अपनी मांद से उस वक़्त क्या होगा ? क्या उस वक़्त तक यह उफान कायम रहेगा ? जब पीडिता के रक्त की बुँदे दिल्ली के बजाय अरुणाचल , असम, छत्तीसगढ़ या उड़ीसा के जंगलों को लाल करेंगी उस वक़्त क्या यह ऊष्मा उफान दे पायेगी ?
धनंजय चटर्जी के बाद जो शांत न हो सका क्या वो आज हो पायेगा ? और क्या इन्साफ कर रही यह भीड़ पुनः आम हो पायेगी ?
खैर वैसे असली दूध और इंसानों में कुछ तो फर्क रहेगा ही ,क्यों?

Wednesday, December 19, 2012

आओ गुस्सा करें


यह जो भी हुआ क्या उसके लिए वाकई पुरुष दंभ या जो भी कारण बताया जा रहा है वही दोषी है ? या कापुरुषता व नपुंसकता ? क्या समाज दोषी नहीं ? क्या लडकियों के माता-पिता दोषी नहीं ? क्या विद्यालय -विश्वविद्यालय दोषी नहीं ? क्या सरकार दोषी नहीं ? क्या हम उम्र दोषी नहीं ? क्या साहित्यकार दोषी नहीं या रचनाकार ? इस हमाम में वस्त्र धारण कर कौन खड़ा है? नग्नता तो हर ही और है अंतर : सिर्फ यही है कोई भौतिक नग्न है तो कोई वैचारिक।
हर जगह पुरुषों का यह कथन हर इस दुर्घटना के बाद प्रचलित हो जाता है "मैं शर्मिंदा हूँ " और उस पर नारी की यह टिपण्णी की "एक नारी की और से धन्यवाद " अजी छोड़िये यह बहाने और आइना देखिये । क्या वाकई हम शर्मिंदे हैं ? हाँ , क्युकी यह हमारी नपुंसकता को छिपाने का सबसे सरल उपाय है । अब यह तो एक रोज मर्रा की घटना बन चुकी है। जिन घटनाओ  को जगह नहीं मिली उनका क्या ? किस दिन के समाचार पत्र में किसी बलात्कार की खबर नही होती ,होती है प्रत्येक दिन होती है , पर एक नपुंसक क्या कर सकता है ,सिवा शर्मिंदा होने के ? अपनी पत्नी से , अपनी बहन ,अपनी बेटी अपनी माँ और खुद से ?
हम इसके आदि हो चुके है । दिल्ली में फिर एक मोमबत्ती जुलुस निकलेगा फिर से नारे लगेंगे,कल फिर  किसी जज का बयान आयेगा ,यह मामला सीबीआई को जायेगा,मुकदमा चलेगा पर फिर क्या ? क्या वाकई में   कोई उपाय है या हम केवल शर्मिंदा होने के आदि हो चुके है । हम गुस्सा कब करेंगे ? कब हम किसी समाधान की और चलेंगे ? आज एक लड़की आधी रात को बलात्कार की शिकार हो सकती है चाहे वो दिल्ली में हो या सिर्फ पांच हजार की आबादी वाले किसी गाँव में,और यह हम तब स्वीकारते है जब घर की कोई लड़की शाम के धुंधलके में अकेले बाहर जाने की जिद करती है और अंगरक्षक की तरह उसका 10 वर्षीय भाई उसके साथ जाता है । एक 10 वर्षीय बालक एक 20 वर्षीय नवयुवती का अंगरक्षक बना दिया जाता है । क्या यह प्रथा स्वीकार्य होनी चाहिए ? क्यूँ न विद्यालयों में लडकियों के लिए शारीरिक प्रशिक्षण अनिवार्य की अनिवार्य व्यवस्था की जाये ? क्यों न हर जिले में लडकियों के लिए इस तरह की व्यवस्था की जाये ? क्यों न बचपन से ही उन्हें मानसिक व् शारीरिक रूप से सुदृढ़ करने का प्रयास किया जाये ?
क्यों न हम अब और शर्मिंदा न हो ? क्यों न हम अब गुस्सा करे ? क्यूँ न अपने गुस्से को एक साकार रूप लेने का अवसर प्रदान करें
मैं आज शर्मिंदा  नहीं , मैं गुस्से में हूँ । और आप ?

Tuesday, December 18, 2012

"मैं चुप रहूँगा "


जो हो शराबा शोर का
बाजुओं के जोर का
क्रंदना सी झंकार का
तिलमिलाती सीत्कार का
"मैं चुप रहूँगा "

लुट रही हो चाहे कोई
खो कर  अपनी आबरू
न हुआ हूँ न मैं हूँगा
न होगा कोई आज उससे रूबरू
हर किसी का बलात्कार हो
इक या चाहे हजार हो
"मैं चुप रहूँगा "

नग्नता स्वीकार है
चाहे हो मच रहा सीत्कार है
वासना के किस्से सुनूंगा
बस तो फिर भी बस ही है
खुली सड़क का इंतज़ार है
उस सड़क पर मैं भी रहूँगा
हा हा  दिल्ली मैं भी करूंगा
लेकिन न भूलना इस बात को की
"मैं चुप रहूँगा "


Saturday, December 8, 2012

ह्रदय ह्रदय की दशा

घमंड हमेशा ही बुरा ही नहीं होता । 
विश्व के कुछ सबसे ज्यादा घमंडी लोगो का क्या हश्र हुआ ये सुने व पढ़े ।

रावण                 - बैकुण्ठ धाम 
कंस                    - बैकुण्ठ धाम 
हिरण्यकश्यप      - बैकुण्ठ धाम 
महिषासुर            - बैकुण्ठ धाम 
हिरण्याक्ष             -बैकुण्ठ धाम 

परन्तु जो "सरल ह्रदय" थे,उनका  क्या हुआ ?

विभीषण           - आज तक जीवित 
जाम्बवंत           - पता नहीं 
सुग्रीव                - पता नहीं 
विदुर                 - पता नहीं
परिक्षित             - सांप ने काट लिया 
हरिश्चंद्र              - राज पाट खोया,परिवार भी(बाद में हासिल दोनों ही हुए परन्तु क्या फायदा )

अतः यह आपका  स्वंय का निर्णय है की आपको क्या करना है व क्या बनना है ।


* शर्ते एवं  नियम लागु ।

Wednesday, December 5, 2012

किसकी प्रगति ,कैसी प्रगति

भारत की छवि आज  विश्व के सबसे तीव्र गति से विकास करने वाले राष्ट्र की है जो अपनी तकनीकी खूबियों के लिए जग-प्रसिद्ध हो रखा है । और एक भारतीय होने के नाते ये एहसास दिल को गुदगुदाने वाला ही होता है जब पता चलता है की हमारा देश एक मूल्य-प्रधान राष्ट्र है। जिस पश्चिम को हम बचपन से ही लालची समझते आये है जब यह देखते है की वो न्याय के आदर्शों का पालन कर रहा है वाकई में तो यह एहसास अलग सा ही होता है । हिल्टन हो या गुप्ता या हालिया ही कारावास की सजा पाए एक देश के प्रधानमंत्री,जो अपनी लालच के लिए जाना जाता है वही न्याय कर रहा है न की वो जो अपने आदर्श,न्यायिक मूल्यों के लिए जाना जाता है । यहाँ तो भ्रष्टाचार के खिलाफ जाने वालों को ही सजा होगी । 
किसी तकनीक को बेचना तो जानते है हम परन्तु उसे ईजाद करने का रास्ता भूले बैठे है । सबसे सस्ती कार तो बना सकते है परन्तु पहली कार नहीं । क्या वजह हो सकती है की हम जो सस्ता "आकाश " जमीन पर लाने  की सोचते है तो वो भी एक षड़यंत्र का शिकार हो जाता है । अपने ही पेंशन को पाने को अपने ही  पढाये शिष्यों को रिश्वत देनी पड़े,यह सिर्फ अज के भारत में ही हो सकता है । 
न हम करना चाहते  है न ही सीखना,यही तो वजह हो सकती है ही हमारे धनकुबेरों ने बफेट को दान की सीख न देने की चेतावनी दी वो भी सरेशाम। अमेरिका जैसे धन के लोभी देश से हमे कम से कम अज एक चीज़ तो सिखने की जरुरत है ही ,किस तरह एक छब्बीस वर्षीय नवयुवक सबसे युवा अरबपति बन सकता है और उसी उम्र में अपनी आधी सम्पदा दान कर सकता है । यहाँ तो लोग राडिया टेप के बाहर आने से परेशान हो जाते है न की उसमें की गयी बातचीत से । 
जब तक मूल्यों को खाद न दिया जाये तब तक हम सिर्फ भारत की सिलिकॉन वैली बना सकते है पहली नहीं ।