यूथेनेसिया या ईच्छा-मृत्यु आज सभ्य मानव समाज के लिए एक अजीब सा प्रश्न बनकर सामने आ खड़ी हुई है | कानूनन इसकी अभी बहुत सी राष्ट्रों मे इजाजत नही, बहुत से विद्वान इसे एक निंदनीय प्रस्ताव मानते है और इसके लिए कभी भी समर्थन नही कर सकते | यूथेनेसिया को आत्महत्या कह नकार देना क्या एक उचित कदम है आज इस बात पर एक सार्थक बहस और विचार की जरुरत है । जिस तरह एक शुतुरमुर्ग किसी शिकारी को देख अपना सर जमीन में छुपा यह समझता है की संकट टल गया उसी तरह की खुद को झूठी सांत्वना दे रहा है आज का यह समाज|
भारत का कानून सहित हर लोकतान्त्रिक देश का कानून उसे ससम्मान जीने की इजाजत देता है तो वही कानून जब वो इंसान जीने में लाचार हो जाये तो उसे ससम्मान मरने की इजाजत क्यों नही देता |प्राचीन काल मे भी हमारे ऋषियों द्वारा योग द्वारा शरीर छोड़ने की बातें सुनने मे आती है वो भी तो एक तरह की ईच्छा-मृत्यु ही थी| योग का आठवां आसन "समाधी " देखा जाये तो यही तो है|
अगर बात भारतीय दर्शन की हो तो "गीता " में खुद भगवान ने कहा है"यह शरीर हमारी आत्मा के लिए एक वस्त्र की तरह है जिस तरह हम अपने पुराने वस्त्रो को उतर कर नए वस्त्र धारण करते है उसी तरह हमारी आत्मा भी पुराने,जर्जर शरीर को छोड़ नया शरीर धारण करती है " तो क्या हमारी आत्मा को ये इजाजत नही होनी चहिये की वो अपनी मर्जी से नए शरीर को धारण करने को स्वतन्त्र हो सके ? जब कोई इंसान इस हालत में हो की वो बिना किसी सहारे के अपनी भावनाओं को व्यक्त भी ना कर सके और वो खुद अपने इस जीवन से उब चूका हो तो क्या उसे इस कष्टपूर्ण जीवन से मुक्ति पाने का मौका देना क्रूरता है ? गुजारिश का नायक अपने विरोधी को एक बक्से में थोड़ी देर के लिए बंद कर ये सन्देश पूरी दुनिया को देता है की बिना उनके दर्द को समझे हुए उनके भविष्य का फैसला करना उचित नही , क्रूरता यहाँ है |
सवाल यही है क्या उन्हें हमेशा के लिए इस पीड़ा को भुगतने देना क्रूरता नही ?क्या उनकी विवशता को न समझना क्रूरता नही?क्या उन्हें हमेशा के लिए किसे सहारे पर जीवित रहने के लिए छोड़ना क्रूरता नही? क्या किसी की याचना को सामाजिकता के दायरे में लेन की कोशिश करते हुए ठुकरा देना क्रूरता नही?
अगर बात भारतीय दर्शन की हो तो "गीता " में खुद भगवान ने कहा है"यह शरीर हमारी आत्मा के लिए एक वस्त्र की तरह है जिस तरह हम अपने पुराने वस्त्रो को उतर कर नए वस्त्र धारण करते है उसी तरह हमारी आत्मा भी पुराने,जर्जर शरीर को छोड़ नया शरीर धारण करती है " तो क्या हमारी आत्मा को ये इजाजत नही होनी चहिये की वो अपनी मर्जी से नए शरीर को धारण करने को स्वतन्त्र हो सके ? जब कोई इंसान इस हालत में हो की वो बिना किसी सहारे के अपनी भावनाओं को व्यक्त भी ना कर सके और वो खुद अपने इस जीवन से उब चूका हो तो क्या उसे इस कष्टपूर्ण जीवन से मुक्ति पाने का मौका देना क्रूरता है ? गुजारिश का नायक अपने विरोधी को एक बक्से में थोड़ी देर के लिए बंद कर ये सन्देश पूरी दुनिया को देता है की बिना उनके दर्द को समझे हुए उनके भविष्य का फैसला करना उचित नही , क्रूरता यहाँ है |
सवाल यही है क्या उन्हें हमेशा के लिए इस पीड़ा को भुगतने देना क्रूरता नही ?क्या उनकी विवशता को न समझना क्रूरता नही?क्या उन्हें हमेशा के लिए किसे सहारे पर जीवित रहने के लिए छोड़ना क्रूरता नही? क्या किसी की याचना को सामाजिकता के दायरे में लेन की कोशिश करते हुए ठुकरा देना क्रूरता नही?
isn't this thing equal 2 sucide?
ReplyDeleteR u promotingsucide?
by no means Sir.........i'm just putting my views ...it's just up to you whether u accept it or reject it
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