The power of thought

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Saturday, February 5, 2011

मौत की भी राजनीति, मानवता पर तमाचा

"मैं हनीफ पर हुए अत्याचारों को सुन कर रात भर सो नही पाया " कुछ ऐसा ही बयान था हमारे प्रधानमंत्री  का| परन्तु डॉ. आशीष  चावला की मौत के बाद उनके परिवार पर हुए अत्याचारों के बावजूद भारत के एक चपरासी तक की नींद नहीं टूटी| क्या आपने ऐसी खबर कभी पड़ी या सुनी है की सामान्य परिस्थिति मे किसी की मृत्यु हुई हो और उसका अंतिम संस्कार लगभग 11 महीने बाद हुआ हो? मैंने व्यक्तिगत रूप से ऐसा कभी नही सुना परन्तु ऐसा ही कुछ घटित हुआ दिल्ली निवासी डा. आशीष चावला के साथ जो सउदी अरब के नजरान स्थित किंग खालिद अस्पताल मे कार्डियोलोजी विभाग मे कार्यरत थे | उनका निधन 31 -01 -2010 को हृदयाघात से हो गया था परन्तु उनकी लाश 11 माह तक वहां के अस्पताल मे पड़ी रही|
                         अरब मे डा. चावला,उनकी धर्मपत्नी डा.शालिनी चावला,डॉ वर्ष की पुत्री और नवजात पुत्र 'वेदांत' पर जो अत्याचार हुआ उसे  जिस भारतीय ने सुना उसकी नींद उड़ गयी परन्तु हमारे प्रधानमंत्री की नहीं| डा. शालिनी के चाचा श्री. एच.जी.नागपाल ने प्रधानमंत्री से गुहार भी लगायी,परन्तु उन्होंने एक चिट्ठी तक लिखना मुनासिब नही समझा| डा. आशीष की मृत्यु उस समय हुई जब डा.शालिनी को 8 माह का गर्भ था| विडम्बना यह की अस्पताल के शव-गृह मे पति की लाश और चिकित्सा कक्ष  मे पत्नी भर्ती | डा.चावला के साथ काम करने  वाले  कुछ सहकर्मियों ने वह यह शिकायत  दर्ज करवाई की डा. चावला ने इस्लाम काबुल कर लिया था इसलिए उनकी पत्नी ने उन्हें जहर  देकर मार दिया | 16 मार्च 2010 को पुलिस ने डा.शालिनी को जेल मे डाल दिया |
            भारत मे तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने अवश्य सउदी अरब के राजदूत से बातचीत की परन्तु उसने मदद से इंकार कर दिया| अप्रैल 2010 मे पुनःपरीक्षण मे वहां के चिकित्सको ने बताया उनकी मौत स्वाभाविक हृदयाघात से हुई | परन्तु डा शालिनी की मुसीबतें यही समाप्त नही हुई शव को परिजनों के हवाले करने के पहले वह के काजी  ने उनपर 3 शर्तें लादी
  1. सरकार से कोई मुआवजा  नही माँगा जायेगा|
  2. शव को भारत मे इस्लामी तरीके से दफनाया जाएगा |
  3. मामले को दुबारा से नही खुलवाया जायेगा |
इन शर्तो को मानने के बावजूद उनकी राह आसान नही हुई और वो शव लेकर 25 दिसम्बर को ही वह से चल सके | एक भारतीय परिवार के साथ इतना बड़ा जुल्म हुआ फिर भी हमारे देश के करता-धर्ता चुप रहे, क्यों? दुनिया भर की खबरें प्रसारित करने  वाला,कौवो और कबूतरों  से लेकर बिल्लियों तक पर हुए अत्याचारों की कहानिया सुनाने वाला मीडिया भी खामोश रहा, क्यों? मानवता के नाम पर भी राजनीति हो रही है, आखिर क्यों? आज सनातनी  हिन्दू पैदा होना भी 1 अपराध हो गया , आखिर क्यों? और सबसे बड़ा सवाल हम लोग हाथ पर हाथ धर कर बैठे हुए है , आखिर क्यों?
क्यों?क्यों?और क्यों?  

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