The power of thought

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Saturday, June 11, 2011

स्वप्न की बेला

स्वप्न की बेला टूटेगी कब 
पौरुषता जागेगी कब|
आशंका के बादल ठीठकेंगे कब
ये भयावरण उतरेगा कब ||

मानवता चीखी थी जब 
लोकतंत्र रोया था जब |
अत्याचार मुस्काया था जब 
देख बेटे की लाश माँ रोई थी जब ||

अन्याय वेला घिर आई है अब 
लगता पाप से हारा है पुण्य अब |
एक बिजली सी कौंधी है अब 
न बैठेंगे अब खामोश हम ||

अब हैं खड़े भयावरण को उतार सब
देखते हैं अब सीधे आँखों में आँखें डाल सब ||
हैं हाथो में हाथ डाले तैयार सब 
निर्वस्त्र माँ को पहनाएंगे अब वस्त्र सब||


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