आख़िरकार 60 वर्षो की मुकदमेबाजी के बाद अदालत ने राम-जन्म भूमि के मामले मे अपना फैसला सुना दिया और जैसी आशंका थी यह धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का धर्मनिरपेक्ष फासिला रहा | जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट से साफ़ हो गया था की विवादित स्थल वास्तविकता मे 1 मंदिर ही था तो फिर उसके बाद असमंजस कैसा ? जहाँ करोडो लोगो की आस्था जुडी हो उसका फैसला करने मे विलम्ब कैसा , वेग भी जब वह आस्था न्यायसंगत हो ? स्पष्ट है की मुस्लिम हिन्दू बंधुओ को इस पर प्रसन्नता ही हुई होगी की जब उनका दावा ख़ारिज हो गया था उसके बावजूद उन्हें 1 /3 जमीन प्राप्त हो गयी |
मेरे कई मित्र व सम्बन्धी मुझसे 1 सवाल पूछते है " आख़िरकार मंदिर-मस्जिद पर इतना हल्ला क्यों ? क्यों न अपने मुस्लिम हिन्दू भाईयों को ही जमीन दे दी जाये ?" वैसे सभी लोगो को मेरा 1 ही उत्तर है "विवाद मंदिर का नही , उपासना स्थल का बाद मे , यहाँ राम-लाला की जन्मभूमि का मसला है | नमाज कही भी पड़ी जा सकती है , वह या 1 किमी दूर भी , परन्तु जन्मस्थान तो 1 इंच भी खिसकने के बाद अपनी महत्ता खो बैठता है | इस मसले को वो सभी लोग समझ सकते है जिन्हें अपने घर से प्रेम है जहाँ उनका जन्म हुआ , उस कलम से प्रेम है जो उनके सबसे प्रिय शिक्षक ने सिर्फ उन्हें ही दिया , उस कमरे से प्रेम है जहाँ उनकी संतानों का जन्म हुआ , जहाँ उनके माता-पिता का देहावसान हुआ | लेकिन अगर आप मे यह प्रेम नही तो आप इस आस्था को महसूस नही कर सकते |
वैसे भी, बाबर कोई महापुरुष या संत तो था नही , था तो वह 1 आक्रमणकारी ही | यह भी विचारणीय है की कोई भी विदेशी आक्रान्ता अपने परिवार के साथ यहाँ नही बसा , बाबर से पहले | तो यह तो स्वत: स्पष्ट है की भारतीय हिन्दू मुस्लिमो के पूर्वज भी पूर्व मे सनातनी हिन्दू ही थे जिनके आराध्य नि:संदेह श्री राम होंगे | अतः राम पर प्रश्न उनके द्वारा उनके पूर्वजो का भी अपमान है|
आजकल 1 बात और कही जा रही है की आज का भारतीय इस मसले से उपर उठ चूका है तो वास्तविकता यह है की आज का भारतीय उपर नही उठा बल्कि उदासीन व निष्क्रिय हो गया है जो आज अपने राष्ट्र व देश पर मंडराते खतरे पर भी चुप बैठा है अतः ये उसकी परिपक्वता नही अपितु अपरिपक्वता की ही निशानी है जो पुनः राष्ट्रघाती है , जैसा की मैंने अपने पिछले ब्लॉग मे भी कहा है |
अंत मे सबसे प्रमुख बिंदु , तीनो माननीय न्यायधीशों ने मन की विवादित स्थल ही राम जन्मभूमि है फिर भी उन्होंने 2 -1 से सुन्नी वक्फ बोर्ड को 1/3 हिस्सा दिया | पूरे भू-खंड को 3 हिस्सों मे बांटने का उनका फैसला यक़ीनन अंग्रेजो की याद दिलाता है जो आपाधापी मे भारत को टुकड़ो मे बाँट गए थे और जिसकी टीस आज भी राष्ट्रवादियो को सालती है | पर विचारणीय बिंदु यह है की क्या अदालत का यह फैसला तब भी आता अगर वह सुन्नी वक्फ बोर्ड की जीत होती ?
कहीं , यह भारत के अंत की 1 झलक तो नही ? क्योंकि जो राष्ट्र अपनी संस्कृति की रक्षा करने मे अक्षम है वह विश्व के मानचित्र मे बने रहने मे सक्षम कैसे हो सकता है
यह टीस तो है ही. और आपकी अन्तिम पंक्तियों में सत्य छुपा है..
ReplyDeleteWell I am very happy with the decision given, Actually it was predefined but i don't why i took so long.. People were just using it as a political issues and generating revenue ..but i hope this decision gonna stop these nonsense...
ReplyDeletei agree
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