तू है अनमोल,यह मानता हूँ ,
और जो है तेरे दिल में एक दर्द वह भी मैं जानता हूँ
नहीं तू चाहती मुझको,यह भी स्वीकारता हूँ ,
और न कभी चाहेगी मुझको, यह भी अब जानता हूँ
भुलाने को तुझको यह दिल खंगालता हूँ
लेकिन दिल ही नहीं रूह में भी,बस तुझको ही अब पाता हूँ
क्या करूं मैं ,जो सिर्फ तुझको ही चाहता हूँ ॥
था माँगा भी,तो क्या माँगा मैंने ?
संग तेरे दो पल ही तो बिताना चाहा मैंने,
खुद से भी ज्यादा है, तुझको अब चाहा मैंने
लिए तेरे ही अब न जाने,कितने अश्क बहाए मैंने ।
तू है नहीं मेरी ,खुद को यह भी समझाया मैंने ,
पर दिल ही दिल ,सिर्फ तुझको ही तो है चाहा मैंने ॥
नहीं वो उसका ,
यह जानते भी तो चकोर, चाहता बस चाँद है
और बजाये खोने, पतंगा उसी प्यार में हो जाता होम है ।
तो अब मैं भी हूँ यह चाहता की , जो तू न चाहे मुझको
तो इससे पहले की खो दूँ तुझको ,तेरे प्रेम में ही होऊं भस्म ॥
तोड़ तेरा दिल भी जो तुझको याद है
कर यकीं वह वाकई में होगा खास है ।
क्यूंकि होना तेरे दिल के पास अपने आप ही एक बात है ।
जो मिले खुदा आज तो बस चाहता यही हूँ मांगना
की जो वाकई ही मैं उसकी ही संतान हूँ
तो आज वो एक सबूत दे
मेरी ज़िन्दगी में , बस थोड़ा सा तेरा प्यार दे ॥