The power of thought

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Tuesday, June 28, 2011

दशावतार की प्रतीक्षा

रात के पहरुओ में,
अंधकार के झुरमुटो में |
एक टीस हो गयी ,
सुनी आँखे पानी से भर गयी ||
राम और केशव की जन्म-भूमि,
निवेदिता और टेरेसा की अतुलनीय कर्म-भूमि ,
लुट चुकी है 
बिक चुकी है |
अपने ही प्रांगण में बेआबरू हो खड़ी है,
कृष्ण के इंतज़ार में द्रौपदी रो पड़ी है ||
युधिष्ठर सा सौम्य यहाँ नहीं चाहिए ,
यहाँ तो भीम की प्रलयंकारी गर्जना गुंजायमान होनी चाहिए |
विभीषण सा भ्राता न भी हो तो गम नहीं,
कर्ण से सखा से कुछ कम हम अब स्वीकार नहीं ||
माताओं  की सुनी कोखों की,
बहनो की झिलमिलाती अंखियो की 
प्रतीक्षा कब समाप्त होगी ?
घोटालों  के इस देश में कब दशावतार की शुभ वो घडी होगी??




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