The power of thought

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Saturday, February 26, 2011

यूथेनेसिया:मुझे ससम्मान मरने का हक़ है

यूथेनेसिया या ईच्छा-मृत्यु आज सभ्य मानव समाज के लिए एक अजीब सा प्रश्न बनकर सामने आ खड़ी हुई है | कानूनन इसकी अभी बहुत सी राष्ट्रों मे इजाजत नही, बहुत से विद्वान इसे एक निंदनीय प्रस्ताव मानते है और इसके लिए कभी भी समर्थन नही कर सकते | यूथेनेसिया को आत्महत्या कह नकार देना क्या एक उचित कदम  है  आज इस बात पर एक सार्थक बहस और विचार की जरुरत है । जिस तरह एक शुतुरमुर्ग किसी शिकारी को देख अपना सर जमीन में  छुपा यह समझता है की संकट टल गया उसी  तरह की खुद को झूठी सांत्वना दे रहा है आज का यह समाज| 
   भारत का कानून सहित हर लोकतान्त्रिक देश का कानून उसे ससम्मान जीने की इजाजत  देता है तो वही कानून जब वो इंसान जीने में लाचार हो जाये तो उसे ससम्मान मरने की इजाजत क्यों नही देता |प्राचीन काल मे भी हमारे ऋषियों द्वारा योग द्वारा शरीर छोड़ने की बातें सुनने मे आती है वो भी तो एक तरह की ईच्छा-मृत्यु ही थी| योग का आठवां आसन "समाधी " देखा जाये तो यही तो है|
अगर बात भारतीय दर्शन की हो तो "गीता " में खुद भगवान ने कहा है"यह शरीर हमारी आत्मा के लिए एक वस्त्र की तरह है जिस तरह हम अपने पुराने वस्त्रो को उतर कर नए वस्त्र धारण करते है उसी तरह हमारी आत्मा भी पुराने,जर्जर शरीर को छोड़ नया शरीर धारण करती है " तो क्या हमारी आत्मा को ये इजाजत नही होनी चहिये की वो अपनी मर्जी से नए शरीर को धारण करने को स्वतन्त्र हो सके ? जब कोई इंसान इस हालत में हो की वो बिना किसी सहारे के अपनी भावनाओं  को व्यक्त भी ना कर सके और वो खुद अपने इस जीवन से उब चूका हो तो क्या उसे इस कष्टपूर्ण जीवन से मुक्ति पाने का मौका देना क्रूरता है ? गुजारिश का नायक अपने विरोधी को एक बक्से में थोड़ी देर के लिए बंद कर ये सन्देश पूरी दुनिया को देता है की बिना उनके दर्द को समझे हुए उनके भविष्य का फैसला करना उचित नही , क्रूरता यहाँ  है |
सवाल यही है क्या उन्हें हमेशा के लिए इस पीड़ा को भुगतने देना क्रूरता नही ?क्या उनकी विवशता को न समझना क्रूरता नही?क्या उन्हें हमेशा के लिए किसे सहारे पर जीवित रहने के लिए छोड़ना क्रूरता नही? क्या किसी की याचना को सामाजिकता के दायरे  में लेन की कोशिश करते हुए ठुकरा देना क्रूरता नही?



Sunday, February 13, 2011

सम्पूर्ण राष्ट्रगान

(1)
 जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता |
पंजाब  सिंध गुजरात मराठा द्राविड उत्कल बंग 
विन्ध्य हिमाचल जमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग 
तब सुबह नामे जागे,तव शुभ आशीष माँगे
गाए तव जय गाथा |
जनगण मंगल दायक जय हे 
भारत भाग्य विधाता !
जय हे,जय हे,जय हे,
जय,जय,जय,जय, हे !!
(2)
अहरह तव आहान प्रचारित 
सुनि तव उदार वाणी 
हिन्दू,बौद्ध,सिख,जैन,पारसिक 
मुसलमान,ख्रिस्तानी 
पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन पासे 
प्रेम हार हय गाथा |
जनगण ऐक्य विधायक जय हे 
भारत भाग्य विधाता !
जय हे,जय हे,जय हे,
जय,जय,जय,जय,जय हे !! 
(3)
पतन-अभ्युदय-बन्धुर पन्था 
युग युग धावित यात्री 
हे चिर सारथि,तव रथचक्रे 
मुखरित पथ दिनरात्री
दारुण विप्लव माझे 
तव शंखध्वनि बाजे
संकट दुःखत्राता |
जनगण पथ परिचायक जय हे 
भारत भाग्य विधाता !
जय हे,जय हे,जय हे,
जय,जय,जय,जय,जय हे !! 
(4)
घोर तिमिर घन निबिड निशीथे 
पीड़ित मुर्छित देशे 
जाग्रत छिल तव अविचल 
मंगल नतनयने अनिमेषे |
दुःस्वप्ने आतंके रक्षा करिले अंके
स्नेहमयी तुमि माता |
जनगण दुःखत्रायक जय हे 
भारत भाग्य विधाता !
जय हे,जय हे,जय हे,
जय,जय,जय,जय,जय हे !! 
(5)
रात्रि प्रभातिल,उदिल रात्रि-छबि
पूर्व उदयगिरी भाले
गाहे विहंगम,पूर्ण समीरन
नव जीवन-रस डाले |
तव करुणारनरागे निद्रित भारत जागे 
तव चरने नत माथा |
जय जय जय हे,जय राजेश्वर 
भारत भाग्य विधाता !
जय हे,जय हे,जय हे,
जय,जय,जय,जय,जय हे !! 

Wednesday, February 9, 2011

सुरक्षा परिषद को भारत की आवश्यकता


भारत सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बने, यह मुद्दा आजकल हमारी विदेश नीति की सर्वोच्च प्राथमिकता बन गयी है | कोई भी देश हो और कोई भी भी राजनेता, कोई हमारे देश आया हो या हमारे  देश के राजनेता किसी दूसरे देश मे हो , हम उसी तरह संयुक्त     
पत्रकार वार्ता मे उस प्रतिनिधि से हमरे दावे का समर्थन करवाने की कोशिश करते है जिस तरह हिंदी फिल्मो मे वकील गवाह से जज के सामने बुलवाने की कोशिश  करता है | काफी लम्बे अर्से से हम इसी प्रयास मे लगे हुए है और स्थाई सदस्यों मे से चीन के अलावा सभी देशो ने भारत के पक्ष का समर्थन कर ही दिया | परन्तु क्या इन 5 देशो के समर्थन  कर देने भर  से भारत स्थाई सदस्य बन जाएगा? जवाब सरल है, नहीं |
यह किस राष्ट्र को या खुद भारत को नही पता की आज अकेले भारत को सुरक्षा परिषद् का सदस्य बनाना संभव नही बल्कि लगभग असंभव है| क्या आज संयुक राष्ट्र के 2 /3 अर्थात सवा सौ राष्ट्र अकेले भारत के लिए ऐसा कोई प्रस्ताव लाने को तैयार हो जायेंगे और सुरक्षा परिषद् का बहुमत और सारे  वीटोधारी राष्ट्र उसे मानने  को तैयार  हो जायेंगे ? भारत ने ऐसा कौन  सा चमत्कारी काम कर दिया है की सारी दुनिया उसके चरणों मे लोटने लगे और कहे"हे देवता!आप तुरंत सुरक्षा परिषद् मे स्थाई सीट ग्रहण कीजिये वर्ना संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व ही निरर्थक हो जायेगा|
भारत ने ऐसा कोई काम नही किया और न ही निकट भविष्य मे ऐसा कोई काम करने जा रहा है | साफ़ है जब संयुक्त राष्ट्र का पुनर्गठन होगा तो स्वाभाविक रूप से सुरक्षा परिषद् का भी विस्तार  होगा तो उस समय भारत को कौन  रोक सकता है ?
                                       हाल ही हुए अस्थायी सदस्यों के चुनाव मे भारत प्रचन्ड बहुमत  लेकर चयनित हुआ, स्पष्ट है की जब भी सुरक्षा परिषद् का विस्तार होगा भारत का स्थान सर्वप्रथम होगा
भारत के पक्ष को समर्थन देने वाले कुछ प्रमुख तर्क है :
  1. दुनिया की छठी विधिसम्मत  परमाणु शक्ति |
  2. विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र,जिसका सुरक्षा  परिषद् मे होना खुद सुरक्षा परिषद् के लिए गौरव की बात होगी|
  3. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश का प्रतिनधित्व |
  4. निकट भविष्य का विश्व की तीसरी आर्थिक महाशक्ति |
  5. दुनिया के १५० गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों  का नेता, जिसका सुरक्षा परिषद् मे होना निश्चय ही तीसरी दुनिया का आनंद का विषय होगा |
  6. दक्षिण एशिया के राष्ट्र काफी समृद्ध तरीके से उभर रहे है, उनके नेता के तौर पर भारत को सदस्यता मिलनी ही चाहिए |
  7. एक मजबूत सैन्य  ताकत , भारत के अलावा ऐसा कोई राष्ट्र नही जो दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और हिंद महासागर मे सुरक्षा और शांति बनाये रख सके|
  8. भारत ने हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र के शांति  प्रयासों मे आगे आकर भाग लिया है |
  9. हर मोर्चे पर आगे बढता हुआ राष्ट्र |

स्पष्ट है सुरक्षा परिषद की जितनी आवश्यकता भारत को है उतनी ही आवश्यकता सुरक्षा परिषद् को भारत की है | किसी के आगे हाथ फ़ैलाने की जरुरत नही ये तो खुद आगे चलकर भारत के पास आने को बेताब है |         साभार :-नवभारत टाईम्स(लेख की भावना के लिए )

Saturday, February 5, 2011

मौत की भी राजनीति, मानवता पर तमाचा

"मैं हनीफ पर हुए अत्याचारों को सुन कर रात भर सो नही पाया " कुछ ऐसा ही बयान था हमारे प्रधानमंत्री  का| परन्तु डॉ. आशीष  चावला की मौत के बाद उनके परिवार पर हुए अत्याचारों के बावजूद भारत के एक चपरासी तक की नींद नहीं टूटी| क्या आपने ऐसी खबर कभी पड़ी या सुनी है की सामान्य परिस्थिति मे किसी की मृत्यु हुई हो और उसका अंतिम संस्कार लगभग 11 महीने बाद हुआ हो? मैंने व्यक्तिगत रूप से ऐसा कभी नही सुना परन्तु ऐसा ही कुछ घटित हुआ दिल्ली निवासी डा. आशीष चावला के साथ जो सउदी अरब के नजरान स्थित किंग खालिद अस्पताल मे कार्डियोलोजी विभाग मे कार्यरत थे | उनका निधन 31 -01 -2010 को हृदयाघात से हो गया था परन्तु उनकी लाश 11 माह तक वहां के अस्पताल मे पड़ी रही|
                         अरब मे डा. चावला,उनकी धर्मपत्नी डा.शालिनी चावला,डॉ वर्ष की पुत्री और नवजात पुत्र 'वेदांत' पर जो अत्याचार हुआ उसे  जिस भारतीय ने सुना उसकी नींद उड़ गयी परन्तु हमारे प्रधानमंत्री की नहीं| डा. शालिनी के चाचा श्री. एच.जी.नागपाल ने प्रधानमंत्री से गुहार भी लगायी,परन्तु उन्होंने एक चिट्ठी तक लिखना मुनासिब नही समझा| डा. आशीष की मृत्यु उस समय हुई जब डा.शालिनी को 8 माह का गर्भ था| विडम्बना यह की अस्पताल के शव-गृह मे पति की लाश और चिकित्सा कक्ष  मे पत्नी भर्ती | डा.चावला के साथ काम करने  वाले  कुछ सहकर्मियों ने वह यह शिकायत  दर्ज करवाई की डा. चावला ने इस्लाम काबुल कर लिया था इसलिए उनकी पत्नी ने उन्हें जहर  देकर मार दिया | 16 मार्च 2010 को पुलिस ने डा.शालिनी को जेल मे डाल दिया |
            भारत मे तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने अवश्य सउदी अरब के राजदूत से बातचीत की परन्तु उसने मदद से इंकार कर दिया| अप्रैल 2010 मे पुनःपरीक्षण मे वहां के चिकित्सको ने बताया उनकी मौत स्वाभाविक हृदयाघात से हुई | परन्तु डा शालिनी की मुसीबतें यही समाप्त नही हुई शव को परिजनों के हवाले करने के पहले वह के काजी  ने उनपर 3 शर्तें लादी
  1. सरकार से कोई मुआवजा  नही माँगा जायेगा|
  2. शव को भारत मे इस्लामी तरीके से दफनाया जाएगा |
  3. मामले को दुबारा से नही खुलवाया जायेगा |
इन शर्तो को मानने के बावजूद उनकी राह आसान नही हुई और वो शव लेकर 25 दिसम्बर को ही वह से चल सके | एक भारतीय परिवार के साथ इतना बड़ा जुल्म हुआ फिर भी हमारे देश के करता-धर्ता चुप रहे, क्यों? दुनिया भर की खबरें प्रसारित करने  वाला,कौवो और कबूतरों  से लेकर बिल्लियों तक पर हुए अत्याचारों की कहानिया सुनाने वाला मीडिया भी खामोश रहा, क्यों? मानवता के नाम पर भी राजनीति हो रही है, आखिर क्यों? आज सनातनी  हिन्दू पैदा होना भी 1 अपराध हो गया , आखिर क्यों? और सबसे बड़ा सवाल हम लोग हाथ पर हाथ धर कर बैठे हुए है , आखिर क्यों?
क्यों?क्यों?और क्यों?