The power of thought

The power of thought

Tuesday, May 15, 2012

दो शब्द खुद से

स्तब्ध हूँ ,
अपनी ही जमीं पर  पिंजरे में कैद हूँ अभी 
इस  कैद  से बाहर निकलूँ  कैसे 
इसी उधेड़बुन में व्यस्त हूँ अभी 

30 करोड़ भुजाओं वाली 
इस  माँ को गुलाम  बनाया कैसे ?
यूँ लगता हैं जंगल  में मेमनों ने 
शेर को पकड़ कर घंटी पहना दी है ।

हाथों में अभी शक्ति नहीं 
पर हुआ मैं भी अभी निर्बल नहीं 
घुप्प अँधेरा छाया  है 
पर आँखों के अंदर मेरी अभी भी रौशनी है ।

गिरा जरुर हूँ 
पर उठ खड़ा होऊंगा 
दोनों हथेलियों में अनंत इस 
ब्रम्हांड के दो छोर पकडे हूँ खड़ा मैं 




Saturday, May 12, 2012

कसाब का न्याय

"भले ही सौ कसूरवार छुट जाये परन्तु एक  बेकसूर को सजा नहीं मिलनी चाहिये " न्याय  के इस  अनूठे सिद्धांत पर कार्य करती है हमारी न्याय पालिका और भारत  जो प्राचीन  काल  से ही अपनी उदारता के लिए जाना जाता है आज एक अपराधी के लिए अपने आदर्शो से कैसे मुहं मोड़ सकता है ?यही तो वो गुण  है जो भारत  को अनूठा बनाता  है । सोचिये जरा कितनी अनूठी है ये प्रथा "जो विदेशी हमला करने आया था जब उसे न्यायपूर्ण  सजा दिलाने में यकीन रखती  है तो अपने देश के निर्दोष लोगो से कितनी उदारता से पेश आती  होगी "। जरा सोचिये पुरे विश्व में भारत की क्या छवि निर्मित  हुई होगी ?
कसब गुनाहगार है,आज नहीं तो कल  सर्वोच्च  न्यायालय  उसे सजा सुना ही देगा । पर उसे दण्डित करने की आपाधापी में हम  क्यूँ अपने हाथ  और कपडे गंदे करे ?अस्तु हमें अपने न्यायप्रणाली पर यकीन  तो करना ही चाहिये जो विश्व की सर्वोत्तम  हैं क्यूँ की न्याय संगत  है तो हो कर ही रहेगा और यदि नहीं हुआ  तो वो न्याय  ही नहीं और हमारी न्यायप्रणाली न्याय  करने के लिए ही निर्मित और जानी जाती है ।
जरा सोचिये एक  को जल्दबाजी से दण्डित  कर  दिया  गया तो क्या उसके उपरांत  यहाँ एक  नयी प्रथा ही प्रारंभ  नहीं हो जाएगी जिसमे हो सकता है की  हजारों मुजरिमों को दण्डित  कर  दिया  जाये पर इस  सम्भावना को नकारने की हिम्मत  भी कोई नहीं करेगा की ये 2-4 निर्दोषों की बलि भी ले लेगी । यदि हममें से हर कोई जज  बन  फैसला सुनाने ही लगा तो वो अराजकता फैलेगी जो थामे न  थमेगी ।
 अतः प्रभु  नाम  स्मरण  कीजिये और कसाब  को सजा मिलने तक  इंतज़ार कीजिये ।और हाँ अपने न्यायालयों पर  विश्वास  बनाये रखें क्यूँ की जैसा मैं पहले भी कह चूका हूँ 
"न्याय संगत  है तो हो कर ही रहेगा और यदि नहीं हुआ  तो वो न्याय  ही नहीं"

Thursday, May 10, 2012

क्यूँ खामोश हो तुम

हर पूजा में पूज्य हो तुम 
हर घर का आधार हो तुम 
बेटी,दीदी,पत्नी और माँ हो तुम 
ममता और प्यार का साकार रूप हो तुम ।।

पूरे परिवार को एक  सूत्र में पिरोती हो तुम 
कभी देश  की प्रथम  नागरिक  तो कभी अंतरिक्ष  यात्री हो तुम 
समय  पर रण चंडी तो प्रणय -वेला में रम्भा हो तुम ।।

समस्याओं में सरस्वती ,शय्या पर उर्वशी 
गृह-व्यवस्था में लक्ष्मी व चौके में अन्नपूर्णा 
पुत्र के लिए  साक्षात्  पार्वती हो तुम 
लेकिन 
अपने ही कोख  में नष्ट होती अपनी ही छवि के लिए 
क्यूँ खामोश  हो तुम???