The power of thought

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Friday, July 19, 2013

कटाक्ष : एक अधूरी कविता

रे नारी ! तू मुर्ख है ,
है अल्पबुद्धि जो,मांगती अपने अधिकार है ।
आज हुआ कैसे तुझे खुद से ही प्यार है ?
तेरे,अंग प्रत्यंग की रचना हुई ही  है
मेरे विलास को,फिर कैसे
दे दूँ तुझे मैं,तेरे ये कपोल कल्पित अधिकार ।

तू सोचती है,तुझे मांगने पर अधिकार मिलेगा ,
हा पगली ! जो तूने मना किया तो याद रख
अब भी तूझे,ज़िन्दगी झुलसाने का तेजाब मिलेगा ।
रे मुर्ख नारी !
लगी है तू सोचने,कैसे यह मैं भी हूँ सोचता ।
भूल मत,सती बना तुझे जलाया किसने ? मैंने
पहले जन्मजा थी मरती,अब तो बाहर की साँस
भी है दूभर,फिर भी है तू सोचती ।
 तुझे जलाया,रुलाया,तडपाया,मारा
और वासना से मसला किसने ? मैंने

शक की बनाह हुई तो दीवारों पर भी पटका ,
मसालों सा मसला और फिर जितना तेरा
अधिकार, उतने ही छोटे टुकडो में काटने का पुरुषत्व दिखाया ।
फिर भी,तू क्यूँ न है चेतती ?
रे भोग्या ! चेत जा .....
तेरा सम्मान एक ढोंग है ,
तभी तो मेरा परिवार भी है
आज मुझसे सहमा,कल ही मैंने बारह वर्षीया
अपनी बहन को भी था भोगा ।

भारत माता  है तभी तो है बे आबरू
जो मानते इसे पिता तो, बातें कुछ ............


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