The power of thought

The power of thought

Tuesday, February 5, 2013

मैं , केवल मैं

सामने जो प्रतिरूप है 
जो आईने में होता साकार है 
क्या वह  मैं हूँ ?

क्रोध,दर्प,अभिमान 
मोह,लोभ,पीड़ा 
पाने का सम्मान 
गंवाने का अपमान 
जिस सीने में है भरा,
क्या , वह है मेरा ही ?

इस शरीर में जो है  
करता विश्वास होने का 
इस नश्वर का स्वामी ,
क्या वह मैं ही हूँ ?

अवसर,मौके , बारी 
का जो बेइंतहा से 
कर रहा हो इंतजार 
खुद की दुनिया में ही 
मगन बाहर से है बेखबर 
वह एहसास क्या मैं ही हूँ ?

या, हूँ मैं विश्वास !
ब्रम्हाण्ड की सूक्ष्मता से 
कणों की विशालता में 
मिल रहा जो तत्व है ,
क्या वह मेरा है ?

यह जो भी है , वह क्या है ?
है वह क्या मेरा , या हूँ मैं कुछ उसका ?

प्रश्न तो यह है की -
मैं क्या हूँ और क्यूँ हूँ ? 


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