The power of thought

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Sunday, April 8, 2012

वक्त परिवर्तन का

सम्पूर्णता कही नहीं होती , न  कभी हो सकती है । ये तो बस आदर्श है । यह जानते हुए भी की इसे पाना नामुमकिन है इसे पाने की कोशिश मानव सदैव से करता आया है और इसी प्रक्रिया में परिवर्तन आते रहते है साहसियों के कंधो पर।
1192  पृथ्वीराज चौहान की हार के साथ  यह देश दुसरो की कठपुतली बन कर रह गया। अनंत काल से ही वीर सपूत उगलने वाली यह धरती बाँझ बन गयी।वीरता,गौरव व शौर्य एवं ज्ञान की अतुलनीय थाती वाले इस धरती की संतानें आज खुद के इतिहास पर विश्वास एवं गर्व करना भूल गयी बिलकुल उसी राजा की तरह जो खजाने में अरबों की सम्पति होने के बावजूद अपने विरोधियों द्वारा अकाल एवं गरीबी का विश्वास दिलाये जाने पर एक भिखारी की ही तरह मारा गया। जिस बात के लिए दुनिया हमारा लोहा माना करती थी आज खुद हम ही उस पर यकीन करना भूल चुके है। हमारी नैतिकता,ज्ञान ,शौर्य ,साहस व वीरता हमसे दूर जा रही है । दूसरों की कहानियों पर यकीन कर हम खुद पर यकीन करना भूल चुके है और पतन की और अग्रसर हैं ।
किसी भी छलांग के लिए पैरों के नीचे ठोस धरातल मिलना अनिवार्य है बिना जिसके बड़े से बड़ा खिलाडी भी असहाय है ,उसी तरह भविष्य की इस अनंत संभावनाओं में छलांग लगाने के लिए हमारे पास भी हमारे इतिहास का धरातल हो अनिवार्य है ।
समय आ गया है की हम परिवर्तन के चक्र में यकीन रखते हुए अपने इतिहास में झांके पर आँखे अपनी हो न की दुसरो की दी हुई । संभावनाएं अनंत है ,मौके सीमित और समय.........!!!!
अब वक्त है बदलने का जिससे जो हमे न मिला वो हम कम से कम अपने आने वाली संतानों के लिए छोड़ सके।


*(यह लेख  Stayfree "Time to Change" के लिए लिखा गया है
https://www.facebook.com/sftimetochange)


Wednesday, April 4, 2012

पूर्ण-ग्रहण

अंधकार है,घनी रात है 
हर तरफ बस हाहाकार है 
छा चूका अब राष्ट्र में
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।


जहाँ तलक में देखता हूँ,
प्रकाश  का न बाकि निशाँ हैं ।
महावीर निगलती सुरसा का
मुख अब फैला चहुऔर है ।।
छा चूका अब राष्ट्र में 
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।

अमावस्या ही सुलभ है
पूर्णिमा अब विलुप्त है
हर अँधेरी रात बाद
फिर एक अँधेरी रात है ।।
छा चूका अब राष्ट्र में
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।

शिव को पूजो शम्भू को पूजो
दुर्गा या काली को पूजो
शापयुक्त महावीर सम्मुख
आना बाकि बस जाम्बवंत है।

छा चूका अब राष्ट्र में
यह ग्रहण अब पूर्ण है ।।

पर होते होते घट जाएगी
यह कालिमा भी हट जाएगी ।
हजारों काली रातों बाद भी
एक धुंधली सुबह तो आयेगी 
इन ग्रहणों के बाद भी 
नव सूर्य-रश्मियाँ चमचमायेंगी ।
पूर्णता को मिटाने क्या हुआ उदित एक सूर्य है !!!
या
अब भी यह ग्रहण पूर्ण है???