मनुष्य ईश्वर की श्रेष्ठ रचना है , यह एक ऐसी धारणा है जिसे धारण कर ये पूरी मनुष्य जाति आत्म-मुग्ध हो रही है । मनुष्य या मानव कितना गिर सकता है , हम इसकी कल्पना भी नही कर सकते ।
3 साल की बच्ची जिसे देख कर किसी को भी उसपर ममता आ सकती है , जिसे हम दुलारना पसंद करेंगे , उस चंचला बालपन को भी हवस का शिकार बना कर हम क्या साबित करना चाहते है ? अपनी दादी की उम्र की महिला जिन्हें देख कर सामान्यता कोई भी इंसान आशीर्वाद की कामना करेगा को भी अपनी हवस मिटाने का एक जरिया भर समझना इंसानियत को कहाँ ले जा कर कहाँ खड़ा करेगा ??
मानव और दानव ..काफी सूक्ष्म अंतर है दोनों के मध्य । अपने कर्मों के माध्यम से देवता बनना चाहे ही कितना कठिन हो , दानवता को गले लगाना काफी सरल प्रतीत होता है । सारे बुरे और पापों के मध्य जीवन बीता कर ,उनसे अपनी आँखों को फेर कर क्या हम ये उम्मीद लगाये बैठे है की अगर कहीं ईश्वर की सत्ता है तो वो हमें इस जीवन के बाद स्वीकार कर लेगी ? किसी जंगल में अगर किसी एक भी जानवर को कोई शिकारी अपना निशाना बनाता है तो पूरा जंगल रोता है , यहाँ एक दलित महिला सिर्फ अपने दलित होने के कारण सारे बाज़ार नंगी हो पिटती है और पूरा देश तमाशा देखता है ।
2 वर्ष पूर्व पटना में एक महिला को वहां के व्यस्ततम जगह "गाँधी मैदान " पर निर्वस्त्र कर भरी दोपहर पीटा गया हजारों लोगो के सामने । ऐसा नहीं है की वहां मौजूद सभी लोग तमाशा ही देख रहे थे कुछ लोगो ने हिम्मत भी दिखाई और उस "मनोरंजक नज़ारे " को अपने कैमरे और मोबाइल में कैद कर लिया ताकि उसे बाद में अपने दोस्तों को दिखा सके। ऐसा क्यों हो गया है की हमारी कोई भी जिम्मेदारी नहीं , क्यूँ हर खूबसूरत लड़की को हम बस अपनी प्रेमिका ही बनाना चाहते है ,क्या वो बहन नहीं बन सकती ? क्यों समाचार में किसी असहाय इंसान का समाचार पढ़ कर हम अगला पन्ना खोल लेते है , क्यों हम इत्मिनान से बैठे रहते है ?
क्यूँ हम कर्मों से भी मानव बनने का प्रयास नहीं करते ? क्यों हम विश्वास और ईमान से नहीं जी सकते ?