होम कर संपूर्ण सृष्टि
जहाँ तलक थी उसकी दृष्टि |
सृष्टि जीवन को करके स्वाहा
नष्ट कर हर एक बाधा ||
क्रूरता,हाहाकार,मातम
शुष्क साँसे,बंद साँसे |
हस्तिनापुर की वो यादें
आधुनिक जयचंदों के वादें ||
सब समेट कर
कुछ विचार कर|
प्रलयंकारी आँखें वो सिसकी
मौत की लीला छन भर को ठिठकी ||
भ्रष्टाचारियो की दुरात्मा
जा चुकी थी दोजख के रास्ता ||
मंगल वेला का कर के स्वागत
क्रूर मौत बंद कर अपनी आँखें |
शुभ सन्देश कर समर्पित
प्राण-वायु कर प्रतिष्ठित ||
स्वलोक पधारी वो शक्ति
देख उस समाज प्रगति |
था अब दमनक यूँ बोला
"हो दशक बाद फिर हमारा बोलबाला "
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